समाचार संकलन की प्रक्रिया

समाचार संकलन की प्रक्रिया वास्तव में स्ट्रिंगर की जिम्मेवारी महानगर के एक सामान्य पत्रकार से अधिक होती है। स्ट्रिंगर का सामाजिक सरोकार भी अपेक्षाकृत अधिक होता है। पंचायत, गांव या मुहल्ले का स्थाई नागरिक होने के कारण आस-पास के लोगों के साथ उसके संबंध संवेदनशील होते हैं। ऐसा होना उनके लिए स्वाभाविक है। इसका लाभ भी उन्हें आए दिन कवरेज के दौरान भी मिलता है। जब तक उसके सामाजिक सरोकार अच्छे नहीं रहेंगे, तब तक वह अपने इलाके में आंचलिक पत्रकार की भूमिका का निर्वहन सही तरीके से नहीं कर पाएगा। वह हमेशा अपने को चारों ओर की घटनाओं से घिरा हुआ पाता है। कभी-कभी तो वह स्वयं स्थानीय परेशानियों को लेकर किए जा रहे आंदोलनों और प्रदर्शनों का नेतृत्वकर्ता भी बन जाता है। क्योंकि उसे भी वही सामाजिक परिवेश का सामना करना पड़ता है। यहां वह एक साथ कई भूमिकाओं का निर्वहन कर रहा होता है। यहां वह कभी पत्रकार की भूमिका में होता है, तो कभी हस्तक्षेपकर्ता के रूप में। कभी वह खुद पक्षकार बन जाता है। ऐसी स्थिति में वह एक तटस्थ पत्रकार नहीं रह जाता। हालांकि ऐसा वह किसी सोची-समझी रणनीति के तहत नहीं करता। स्थानीय जागरूक नागरिक होने के दायित्व के कारण वह ऐसा करता है। ये तमाम बातें, मानव स्वभाव को दर्शाती है। स्ट्रिंगरों की कार्यप्रणाली के अध्ययन से पता चलता है कि एक समय था, जब ग्रामीण अंचलों में या छोटे शहरों में अंशकालिक संवाददाता केवल समाचार पत्रों को ही अपनी रिपोर्ट प्रेषित करते थे। इनकी कार्यप्रणाली समाचार पत्रों के अनुरूप होती थी। लेकिन उदारीकरण के बाद जब सूचना-तकनीक के क्षेत्र में क्रांति का सूत्रपात हुआ, तब इनके काम करने के तौर-तरीके भी बदल गए। इंटरनेट के आगमन के बाद तो इनकी कार्यप्रणाली ही पूरी तरह बदल गई। इंटरनेट के आगमन के पूर्व ये बड़े इत्मीनान के साथ अपने कार्यालयों को सूचनाएं प्रेषित करते थे। इसके पूर्व तार से सूचनाएं प्रेषित होती थीं। इसके बाद थोड़ी तेजी तब आई, जब ये फैक्स से अपने समाचार प्रेषित करने लगे। इसके लिए उन्हें निकटवर्ती शहरों या बजारों में जाना पड़ता था। फैक्स से सूचनाएं प्रेषित करने में इन्हे सामचार पत्रों द्वारा दिए गए समयों का भी ख्याल रखना पड़ता थ। लेकिन जब इंटरनेट का चलन आया, तब तो इनकी नींद-चैन ही छिन गई। क्यों कि अब सूचनाओं को लेकर आपाधापी की स्थिति हो गई। क्योंकि सूचनाओं के बाजार में जिसने पहले प्रकाशन या प्रसारण किया, वही बाजार का नायक माना जाता है। अब स्ट्रिंगरों के लिए भी कंप्यूटर और इंटरनेट पत्रकारिता के अनिवार्य साधन बन गए। क्योंकि अब उन्हें सभी सूचनाएं निर्धारित समयावधि में भेजनी होती हैं। आज यदि किसी स्ट्रिंगर से खबरें भेजने में देर होती हैं, तब उनकी खबरें डंप करके किसी दूसरे माध्यम से प्राप्त खबरों को प्रकाशित कर दिया जाता है। क्योंकि सूचनाओं की प्राप्ति का एकमात्र स्रोत अब स्ट्रिंगर नहीं रह गया है। सूचनाएं इन दिनों बहुआयामी स्रोतों से प्राप्त होती हैं। सेवंती नैनन ने अपनी पुस्तक ‘‘हैडलाइंस फ्रॉम द हार्टलैंड’’ में ग्रामीण क्षेत्रों के संवाद संकलन का रोचक वर्णन किया है। उन्होंने लिखा है कि ग्रामीण क्षेत्र में अखबार से जुड़े कई काम एक जगह पर जुड़ गए। सेल्स, विज्ञापन, समाचार संकलन और रिसर्च सब कोई एक व्यक्ति या परिवार कर रहा है। खबर लिखी नहीं एकत्र की जा रही है। उन्होंने छत्तीसगढ़ के कांकेर-जगदलपुर हाइवे पर पड़नेवाले गाँव बानपुरी की दुकान में लगे साइनबोर्ड का ज़िक्र किया है, जिसमें लिखा है-‘‘आइए अपनी खबरें यहां जमा कराइए।’’ खबरों के कारोबार से लोग अलग-अलग वजह से जुड़े हैं। इनमें ऐसे लोग हैं, जो तपस्या की तरह कष्ट सहते हुए खबरों को एकत्र करके भेजते हैं। नक्सली खौफ, सामंतों की नाराजगी, और पुलिस की हिकारत जैसी विपरीत परिस्थितियों का सामना करके खबरें भेजनेवाले पत्रकार हैं। ऐसे भी हैं, जो टैक्सी चलाते हैं, रास्ते में कोई सरकारी मुलाजिम परेशान न करे इसलिए प्रेस का कार्ड जेब में रखते हैं। स्ट्रिंगर हो या रिपोर्टर, समाचार संकलन के को लेकर कुछ आधारभूत बातें होती हैं, जो सबों पर एकसमान रूप से लागू होती हैं। शहरों में जहां संवाददाता सम्मेलन, रैलियां, सांस्कृतिक संध्या और अन्य राजनीतिक-समारोहों की धूम मची होती है, ग्रामीण अंचलों में इस तरह की गतिविधियां न के बराबर होती हैं। शहरों में किसी भी कार्यक्रम के पूर्व मुख्यालय में आमंत्रण आता है और बाद में रिपोर्टर को इसके लिए खास तौर से जिम्मेवारी दी जाती है। स्ट्रिंगरों के साथ ऐसा कुछ नहीं होता। वे अपनी जिम्मेवारी खुद तय करते हैं कि आज उन्हें अपने मुख्यालय या ब्यूरो कार्यालय को क्या भेजना है। उन्हें हर दिन सुबह या दोपहर तक बताना होता है कि आज वे अपने यहां से समाचार के रूप में क्या प्रेषित कर रहे हैं। उसके अनुसार ही वे दिन भर अपना काम करते हैं और शाम होने तक वे समाचार प्रेषित कर देते हैं। शहर के संवाददाता या स्ट्रिंगर चूंकि मुख्यालय में बैठकर ही समाचार फीड करते हैं, इसलिए उन्हें इसके लिए अलग से कोई भागदौड़ नहीं करनी पड़ती। लेकिन स्ट्रिंगर को कवरेज के बाद उसे टाइपिंग के लिए कंप्यूटर और इंटरनेट की सेवा के लिए शहरों या बाजारों का रूख करना पड़ता है।

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  1. You have given very good information. I was looking for a similar website. As yours I love reading Although nowadays people watch videos more, but I still like to read.

    RAJRMSA

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