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Showing posts from August, 2014

मानवता से नाता तोड रहा मानव

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मानवता से नाता तोड रहा मानव  जीवन में बढते आधुनिकता और मैट्रो सिटी में मनुष्य के बदलते स्वभाव और परिवेश ने उसे पूरी तरह से बदल कर रख दिया है। पहले एक मानव दूसरे मानव को मार रहा था, गाली दे रहा था, हर कोई उंचाई पर पहुंचना चाह रहा था, दूसरे को नीचा दिखा रहा था। लेकिन समय के बदलते हालात ने परिवेश को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है। अब मनुष्य किसी को मार नहीं रहा है, गाली नहीं दे रहा है, उसे अच्छाई की औ र चलने को प्रेरित नहीं कर रहा है बल्कि उसे छोड अर्थात उसका त्याग कर रहा है। चाहे रिश्ते में एक व्यक्ति दूसरे व्‍यक्ति का माता पिता, पति पत्नी या जन्म देनेवाले नवजात बच्चे की हो। आज कोई उसे सुधारता नहीं बल्कि उसे त्याग देता है। उक्त धटना इन्दौर से संबंधित है। दिन गुरूवार पूरा इन्दौर झमाझम बारिश से सरोबोर था। तेज बारिश और हवा के झोंके ने तपती धरती की आग को जैसे बुझा दिया हो। सबसे अच्छा समय देख नवजात ऋषिका को उसके पिता ने मुसलाधार बारिश में बच्ची के मुंह में कपडा ठूसकर उसे मरने के लिए तिंछा फाल पर फेंक दिया। बाद में इस धटना में बच्ची की मां का भी हाथ बताया गया। अखबारी खबरों के आधार पर प
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Niranjan Kumar एम.फिल प्रथम छमाही के बाद से ही मैंने अध्यापन का कार्य मैंने DAVV, देवी अहिल्या विश्वविधालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला विभाग में अतिथि व्याख्याता के रूप में कार्य करना शुरू कर दिया है। मेरे लिए यह खुशी की बात है कि कुछ दिनों पहले तक मैं यहां अध्ययनरत था और अब एक अध्यापक के रूप में कार ्य कर रहा हूं। मैं अपनी और से पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला के सभी गुरूजनों के प्रति आभार प्रकट करता हूं और यह भरोसा दिलाता हूं कि मैं आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने का पूरा प्रयास करूंगा।   माखनलाल चतुर्वेदी राष्‍ट्रीय पत्रकारिता कॉलेज से सम्बद्ध पत्रकारिता कॉलेज   Virtual Voyage   Indore में अतिथि व्याख्याता के रूप में पढाना शुरू कर दिया था। अध्यापन के तौर पर यह मेरा प्रथम अनुभव था।

हिन्‍दी हैं हम वतन हैं हिन्‍दुस्‍तां हमारा।

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Add caption किसी ने सही ही कहा है नाम में क्या रखा है? भारत को भारत कहें या इंडिया क्या फर्क पडता है? नाम तो सिर्फ उस व्यक्ति, वस्तु की पहचान को इंगित करता है। भारतीय इतिहास कई वीर गाथाओं को अपने आप में समेटे हुए है। इतिहास यह दर्शाता है कि हम भारत की  यादों में लाश के साथ कफन बनकर आए हैं। लाश के अंतिम संस्कार के बाद कफन को उसके साथ दफना दिया जाता है या जला दिया जाता है। कुछ ऐसा ही प्रतित हो रहा है जैसे भारत की आत्मा और उसके कफन को सदा के लिए दफनाने या जलाने का प्रयास सरकार के द्वारा किया जा रहा है। बात भारतीय आजादी की हो या देश पर किसी तरह के संकट का सभी क्षेत्रों में संकटमोचन का काम हिन्दी ने किया है। भारत के ज्यादातर विद्धानों ने हिन्दी में काम किया है। आज भी भारत की आधी से ज्यादा आवादी हिन्दी में काम करना पसंद कर रही है। हिन्दी हैं हम बतन है हिन्दुस्तां हमारा। यह नारा वर्तमान समय में देखा जाए तो ऐसा लगता है जैसे अंधकार, सुनसान पहाडी इलाके में कोई विलाप कर अपने परिचित को बुला रहा है, किसी से मदद की गुहार लगा रहा हो लेकिन आज इसके आगे पीछे कोई नहीं है। जिसने जीवन भर हिन