Niranjan Kumar
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Showing posts from 2014
पूरा शहर कर रहा चित्कार।
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पूरा शहर कर रहा चित्कार। मिनी मुंबई और व्यवसायिक नगरी के नाम से जाना जानेवाला, मध्यप्रदेश का आधुनिक शहर इन्दौर, दीपावली के अवसर पर खामोश हो गया है। खामोशी भी ऐसी कि एक दूसरे की चीख पूकार सुनाई न दे। शहर के लगभग मकानों में ताले लगे हैं। अपने आप पर इतराता हुआ शहर आज ऐसा लग रहा है जैसे रो रो कर अपनों को वापस बुला रहा हो लेकिन आज इसका कोई नहीं सुन रहा है।सभी लोग शहर छोडकर गांव की ओर जा रहे हैं। ट्रैफिक जाम नहीं है,गाडियों के हार्न सुनाई नहीं पड रहे हैं, अब लडकियों को उपर से नीचे तक घुरने वाला कोई नहीं है। ऐसा प्रतित हो रहा है जैसे कुछ दिन पहले शहर में सुनामी आई हो। अंत में दीपावली की ढेरसारी शुभकामनाएं और बधाईयां। दीपावली में आप दीप की तरह जलें और पूरे जग को अंधकर से उजाले की ओर ले जाएं।
देश में लहराता भगवा।
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देश में लहराता भगवा। हवा के तेज क्षोंके,आग की चिंगारी की लपटें और नभ में छाए काले बादल की तरह पूरे देश में भगवा रंग गहराता जा रहा है। ऐसा प्रतित हो रहा है जैसे कुछ ही समय में पूरे देश को अपने आगोश में ले लेगा भगवा। भगवा का रंग अब सभी रंगों को अपने में समेट रहा है। स्थ्ाानीय पार्टियां भगवा के सामने दम तोडती नजर अा रही है। हरियाणा और महाराष्ट्र की जीत ने इसके प्रभाव को और भी व्यापक कर दिया है। ।मोदी का मायाजाल। सरकार गठन के बाद पहली बार 9 राज्यों में भाजपा शासित सरकार,भ गवा को लहरा रहा है। मध्यप्रदेश,गुजरात, राजस्थान,छत्तीसगढ, गोवा,महाराष्ट्र,हरियाणा,आध्रं प्रदेश और पंजाब में गठबंधन की सरकार है। ।राहुल की करारी हार। ढाई साल में लोकसभा समेत 16 राज्यों में चुनाव हुए। 11 में कांग्रेस हारी। पांच राज्यों में सरकार गई और लोकसभा में औंधे मुंह गिरे। कह सकते हैं कि मोदी के मायाजाल में पूरी तरह से फंस गई है कांग्रेसी टीम। कांगेस के सफाई के साथ साथ स्थानीय दलों का भी सफाया हो रहा है। भगवा का रंग कोई भी हो? इसपे कितना भी दाग क्यों न हो? लेकिन यह सबको अपने रंग में
हम तुम्हारे हैं सनम
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हम तुम्हारे हैं सनम मैं अपनी श्रीमती जी से बहुत प्यार करता हूं। उसे जीवन में व सारा कुछ देना चाहता हूं जिसकी उसे चाहत है। उसे जीवन में हमेशा बहुत खुश देखना चाहता हूं। पर बदकिस्मती कहें व थोडा दूसरे तरह की खुशी और प्यार पाना चाहती है। जीवन के सफर में आगे बढना है तो आपको बहुत सारे कार्य करने होते हैं। इस तरह के सारे कार्य मेरी श्रीमतीजी को नागवर गुजरती है। अब मैं आपको उनकी खुशी वाली बातें बता देता हूं। सुबह दन्त मंजन एक साथ करें, चाय एक साथ हो, नाशता एक दूसरे को प्यार से खिलाएं, बाइक पे खाली जगह छोडकर सट कर बैठना, पार्टी में हाथ पकडकर चलना, ड्रेस उनके पसंद का पहनना, दिन का खाना मेरे पसंद का हो या न हो रात का खाना उनके पसंद का हो, फिर साथ में खाना, कभी कभी साथ में गाना गाना, घर से बाहर निकलने से पहले ही जल्दी आने का न्योता देना, बाहर निकलते ही हाथ थाम कर चलना जैसे मैं उसे छोडकर कहीं भागने वाला हूं। अब उसको कौन समक्षाए की दिनभर यही करूंगा तो काम कौन देखेगा। बार बार दुहराता हूं हम तुम्हारे हैं सनम फिर भी नहीं मानती। व्यापार घाटे में जा रहा है। मामला थोडा पेचीदा और उलझा
शिक्षक दिवस
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आज देश के सभी स्कूलों,कॉलेजों में भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और देश के द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाएगा। कहा जाता है कि शिक्षक राष्ट्र निर्माण, समाज निर्माण और युग प्रवर्तक होता है। वर्तमान समय में आधुनिक शिक्षा की बढती महत्ता ने शिक्षा को भी राजनीति का अखाडा बना दिया है। भारत की पूरी शिक्षा व्यवस्था किसी शिक्षक के पास नहीं बल्कि किसी व्यवसायी के पास होता है। भारत में गुरू शिष्य परंपरा आदिकाल से रही है। कहा जाता है कि गुरू बिना ज्ञान अधुरा होता है। गुरू की प्रासांगिकता भी आधुनिकता के दौर में बदलती जा रही है। अब पढाने वाले लोगों की इज्जत कम और नेता गुरू की इज्जत ज्यादा होती है क्योंकि उसकी सियासी पकड ज्यादा होती है। सियासी पकड के सामने वर्तमान समय की शिक्षा व्यवस्था कमजोर हो गई है। माना जाता है कि पढाई में कम भी हों तो चलेगा लेकिन सियासी चाल में ताश के पत्ते की तरह सिर्फ गुलाम और एक्का आना चाहिए। अगर आपमें ये तमाम खूबियां है तो आप भारत गुरू नहीं बल्कि विश्व गुरू हैं। मैं अपने सभी शिक्षाविद गुरू जिस
राजनीति और पूंजीवादी व्यवस्था के मायने
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राजनीति और पूंजीवादी व्यवस्था दोनों के मायने पूरी तरह से अलग हैं। राजनीति जहां राज करने को तत्पर रहती है वहीं पूंजीवादी व्यवस्था पूंजी के माध्यम से गुलामी की डोर को बांध कर रखती है। अगर आप गौर से अध्ययन करें तो यह पाते हैं कि दोनों का अर्थ समान है क्योंकि पूंजीपति पूंजी के माध्यम से शोषण करता है और राजनीति करने वाले आपके बीच रहकर आपका शोषण करता है। कहा जाता है कि जब सामांतवाद को उखाड फेंका गया था तो स्वतंत्र पूंजीवादी समाज का उदय हुआ था। उसी वक्त यह जाहिर हो गया था कि इस स्वतंत्रता का मतलब मेहनतकशों का उत्पीडन और शोषण की नई व्यवस्था का आगमन हो रहा है। शुरूआती समाज ने इस व्यवस्था की आलोचना की,उसकी भर्त्सना की,इसके विनाश का सपना देखा लेकिन काफी प्रयास के बाद भी इसे रोक नहीं सका। जिसका परिणाम आज देख रहे हैं। आज का मोदी युग पूरी तरह से पूंजीवादी युग है। इसमें जिसके पास पूंजी है उसका विकास होगा। बांकी बचे लोग गरीबी की मार से त्रस्त हो जाएंगे। आप मेट्राे में सवारी करने का सपना देख रहे हैं तो यह सही है लेकिन भारत की 90 प्रतिशत आबादी मैट्रो सेवा से दूर रह जाएगी। जि
मैं हूं अवसरवादी।
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धर्मवादी,जातिवादी,दलितवादी,स्वर्णवादी,पूंजीवादी, भाजपा, कांग्रेस, मुलायम, लालू और एक खेमा है अवसरवादी का। सोशल मीडिया से लेकर प्रकाशन और प्रसारण मीडिया तक इसका प्रभाव आसानी से देखा जा सकता है। सभी अपने अपने हक की लडाई लड रहे हैं। देश के किसी भी मुद्धे को ये अपने अपेने नजरिए से देखते हैं। और तर्क भी इतना मजबूत की कुछ समय के लिए सही और गलत का फर्क समझ न आए। जिस देश में इतने वादी और नजरिए वाले लोग होंगे, उनका चश्मा उनके धर्म,जाति,स्वर्ण,दलित,भाजपा और कांग्रेस के नजरिए से देखता और बोलता है। इसमें कौन सा वादी भारतीय विकास की बात करता है। भारतीय गरीबों के लिए रोटी,कपडा और मकान की बात करता है यह मेरे समझ से बाहर है। कहा जाय तो गलत नहीं होगा कि अंधो के देश में आईना बेचता हूं। सभी वादी के उपर बैठे लोग मलाई खा रहे हैं और जनता बिना पीछे कलई किए हुए शिशे में अपना चेहरा देख रही है। जिसेमें कुछ दिखाई नहीं पड रहा है। ये सभी का विकास नहीं बल्कि अपना विकास और बिस्तार कर रहे हैं।
मानवता से नाता तोड रहा मानव
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मानवता से नाता तोड रहा मानव जीवन में बढते आधुनिकता और मैट्रो सिटी में मनुष्य के बदलते स्वभाव और परिवेश ने उसे पूरी तरह से बदल कर रख दिया है। पहले एक मानव दूसरे मानव को मार रहा था, गाली दे रहा था, हर कोई उंचाई पर पहुंचना चाह रहा था, दूसरे को नीचा दिखा रहा था। लेकिन समय के बदलते हालात ने परिवेश को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है। अब मनुष्य किसी को मार नहीं रहा है, गाली नहीं दे रहा है, उसे अच्छाई की औ र चलने को प्रेरित नहीं कर रहा है बल्कि उसे छोड अर्थात उसका त्याग कर रहा है। चाहे रिश्ते में एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का माता पिता, पति पत्नी या जन्म देनेवाले नवजात बच्चे की हो। आज कोई उसे सुधारता नहीं बल्कि उसे त्याग देता है। उक्त धटना इन्दौर से संबंधित है। दिन गुरूवार पूरा इन्दौर झमाझम बारिश से सरोबोर था। तेज बारिश और हवा के झोंके ने तपती धरती की आग को जैसे बुझा दिया हो। सबसे अच्छा समय देख नवजात ऋषिका को उसके पिता ने मुसलाधार बारिश में बच्ची के मुंह में कपडा ठूसकर उसे मरने के लिए तिंछा फाल पर फेंक दिया। बाद में इस धटना में बच्ची की मां का भी हाथ बताया गया। अखबारी खबरों के आधार पर प
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Niranjan Kumar एम.फिल प्रथम छमाही के बाद से ही मैंने अध्यापन का कार्य मैंने DAVV, देवी अहिल्या विश्वविधालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला विभाग में अतिथि व्याख्याता के रूप में कार्य करना शुरू कर दिया है। मेरे लिए यह खुशी की बात है कि कुछ दिनों पहले तक मैं यहां अध्ययनरत था और अब एक अध्यापक के रूप में कार ्य कर रहा हूं। मैं अपनी और से पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला के सभी गुरूजनों के प्रति आभार प्रकट करता हूं और यह भरोसा दिलाता हूं कि मैं आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने का पूरा प्रयास करूंगा। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता कॉलेज से सम्बद्ध पत्रकारिता कॉलेज Virtual Voyage Indore में अतिथि व्याख्याता के रूप में पढाना शुरू कर दिया था। अध्यापन के तौर पर यह मेरा प्रथम अनुभव था।
हिन्दी हैं हम वतन हैं हिन्दुस्तां हमारा।
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Add caption किसी ने सही ही कहा है नाम में क्या रखा है? भारत को भारत कहें या इंडिया क्या फर्क पडता है? नाम तो सिर्फ उस व्यक्ति, वस्तु की पहचान को इंगित करता है। भारतीय इतिहास कई वीर गाथाओं को अपने आप में समेटे हुए है। इतिहास यह दर्शाता है कि हम भारत की यादों में लाश के साथ कफन बनकर आए हैं। लाश के अंतिम संस्कार के बाद कफन को उसके साथ दफना दिया जाता है या जला दिया जाता है। कुछ ऐसा ही प्रतित हो रहा है जैसे भारत की आत्मा और उसके कफन को सदा के लिए दफनाने या जलाने का प्रयास सरकार के द्वारा किया जा रहा है। बात भारतीय आजादी की हो या देश पर किसी तरह के संकट का सभी क्षेत्रों में संकटमोचन का काम हिन्दी ने किया है। भारत के ज्यादातर विद्धानों ने हिन्दी में काम किया है। आज भी भारत की आधी से ज्यादा आवादी हिन्दी में काम करना पसंद कर रही है। हिन्दी हैं हम बतन है हिन्दुस्तां हमारा। यह नारा वर्तमान समय में देखा जाए तो ऐसा लगता है जैसे अंधकार, सुनसान पहाडी इलाके में कोई विलाप कर अपने परिचित को बुला रहा है, किसी से मदद की गुहार लगा रहा हो लेकिन आज इसके आगे पीछे कोई नहीं है। जिसने जीवन भर हिन
सत्ता की चाल पर कलम का नृत्य
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फेसबुक पर लिखने पढने वाले वर्ग में कुछ ज्यादा ही समझदार लोग हैं। आजादी के 67 साल के बाद भी सत्ता की मलाई खाने के फेरे में पढे लिखे समझदार लोगों को आज भी पता नहीं है कि उसका पलडा किस और है। सिक्के की उछाल में ह ेड या टेल होता है। लेकिन फेसबुक पर ज्यादा समझदार लोग हेड को भी अपने पक्ष में और टेल को भी अपने पक्ष में मानते हैं। दोनों मामलों को अपने हित के हिसाब से देखते हैं और सोचते हैं किसमें कितना फायदा है। भारत में शुरूआत से ही फायदे और घाटे की राजनीति के हिसाब से लोगों में बदलाव होता रहा है। लेकिन कलम की धार हमेशा किसी पार्टी या संस्थान के पक्ष या विपक्ष में चली है। वर्तमान समय में कलम की धार कुंद तो हुई ही है साथ ही कलम का वार भी धारदार नहीं रहा। कलम चलाने वाले लेखक सत्ता की चाल पर थिरकते हैं। पूरे देश को ज्ञान का पाठ पढाने वाले प्रोफेसर और देश के बडे पत्रकार जो सभी आमजन को रात में भी आईना दिखाने का काम करते हैं को 16वें लोकसभा चुनाव में भी ये पता नहीं है कि वे किस और हैं। कई लोग तो सत्ता की चाल पर कलम को नृत्य करवा रहे हैं। पत्रकार या प्रोफेसर महोदय से मेरा आग्रह है
अपना बहुमूल्य वोट दो और लोकतंत्र को लूटोतंत्र बनाओ।
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देश में 16वें लोकतंत्र का पर्व लोकसभा चुनाव अब समाप्ति की अौर बढ रहा है। इससे पहले हमने 15 बार लोकसभा का चुनाव किया अौर अपने अपने उम्मीदवार को जीता कर गांव की गली से संसद तक पहुंचाया। ज िसको गांव से संसद तक पहुंचाया वह उम्मीदवार गांव छोडकर शहर की अौर चल दिया। हरबार की तरह इस बार भी महांपर्व में आमजनता अपना बहुमूल्य वोट देकर लोकतंत्र को मजबूत कर रही है। उम्मीदवारों का चयन जाती,धर्म,समप्रदाय के आधार पर हो रहा है, वोट का प्रतिशत बढाकर लोकतंत्र को मजबूत कर रहे हैं, चुनावों में पार्टियों के द्रारा कुछ कर गुजरने की बात हो तो बिना नल के पानी लाने की बात, बिना सेक्स के बच्चे पैदा करना, अब पुरूष भी करेगा बच्चा पैदा, सभी परिवार को निशुल्क सालाना 25-25 लाख बिना काम किए हुए मिलेंगे, घर के सारे कामकाज के लिए रॉवर्ट की व्यवस्था प्रत्येक परिवार को सिर्फ पांच रूपए में, अब महिलाआें को आराम ही आराम इत्यादी और भी कई दावे हैं जो प्रत्येक चुनाव की तरह इसबार भी किया जा रहा है। लोकतंत्र के मुर्ख हमसभी मतदाता इस बार भी गुमराह होकर अपने मत को अधिकार समझकर किसी न किसी को अपना वोट दिया। सवाल वोट देने
मीडिया और राजनीति का रंग।
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होली का रंग आसानी से एक दो दिन में छुट जाता है, राजनीति का रंग राजनीति के समय चढता है और उतर जाता है, अपने चरित्र पर चढा रंग बर्षों नहीं उतरता है और वर्षों लगने के बाद चढता है। सभी लोग किसी न किसी रंग में रंगना ज रूर पसंद करता है। रंग काला ही क्यों न हो रंगना सब कोई चाहता है। काला रंग अंधकार का प्रतिक माना जाता है लेकिन इसका भी अपना अलग मजा है। काले का आस्तित्व सफेद पर टिका होता है। सामान्यत: माना जाता है कि काला रंग शुभ नहीं होता है लेकिन काली कमाई को कभी भी अशुभ नहीं माना जाता है। ।काला का अपना आकर्षण एवं महत्व है। फिर चाहे काला धन हो या काली कमाई इसका आकषर्ण और महत्व सबसे अलग होता है। आज मीडिया भी बाजार का रूप ले चुका है ऐसे में हर कोई बोली लगा रहा है। दूसरे को धटिया बताकर अपने को उत्कृष्ट बता रहा है। आम जनता और जनजनहित के मुद्धे तो काेसों पीछे छुट गए हैं। प्रिंट मीडिया हो या इलक्ट्रानिक मीडिया दिन भर मोदी, राहूल और केजरीवाल जी की प्रतिभा दिखाने में लगा है जैसे आज तक इन तीनों के अलावा कोई नेता पैदा लिया ही न हो। समय है, टेलीविजन चैनलों के टीआरपी की समाचार पत्र के प्र
बलात्कार न करने की सलाह सपा सुप्रिमो मुलायम सिंह का कथन।
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बलात्कार आज के समझदार युवा गलती से कर देते हैं। उन्हें सम्मान देना चाहिए। फांसी नहीं देना चाहिए। आगे से उसे दूसरा बलात्कार न करने की सलाह देकर छोड देना चाहिए। दो बलात्कार में शामिल युवकों को समझाकर और तीसरे बलात्कर में उसके मां बाप को बता देना चाहिए। यह देश हित में हैं। इससे देश तरक्की करेगा। जनसंख्या में बृद्धि होगी। जल्द ही भारत चीन को पीछे छोडकर विश्व में सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश बन जाएगा। जनता को सोचना होगा कि अगर बलात्कार भारत में बंद हो जाएगा तो देश की जनसंख्या कैसे बढेगी। इस पर विचार करना चाहिए। कुछ यही दर्शा रहा है उत्तरप्रदेश के सपा सुप्रिमो मुलायम सिंह का कथन। मानना होगा बहुत ही उंच्च विचार रखते हैं। दिल खुला हुआ है। काश देश में हो रहे बलात्कार की धटनाओं में से कभी ये मौका इन नेताओं के परिवार में किसी के साथ हो। उस दिन पता चल जाएगा कि बलात्कार में शामिल लोगों को फांसी या सम्मान देकर विदा करना चाहिए। इस तरह की अप्रिय घटना ईश्वर न करे किसी के साथ हो लेकिन जब तक कुछ लोगों के साथ घटना घटित न हो जाए तब तक उसका दर्द उसे समझ नहीं आता है।
भीमराव अम्वेडकर
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14 अप्रैल 1891, आज ही के दिन डॉ. भीमराव अम्वेडकर ने जन्म लिया था। आज पूरे देश में अम्वेड कर जयंती मनाई जा रही है। लोगों में खुशी की लहर है। बाबा साहेब ने पूरे देश को एक नई धारा में जोडने का काम किया है। बाबा साहब को दार्शनिक, राजनीतिक, इतिहासकार, अर्थशास्त्री आदी कई नामों से देश और विदेशों में जाना जाता है। अम्वेडकर जैसे महापुरूषों के विचारों से मनुष्य के जीवन में नई उर्जा का संचार होता है। यह संचार पूरे शरीर को मजबूती प्रदान करता है। अम्वेडकर जी ने देश को सम्बोधित करते करते हुए कहा था कि तुम्हीं भारत के मूलनिवासी और सहोदर भाई हो। कोई किसी से छोटा और बडा नहीं है। आज भी बाबा साहब के उच्य विचार हमारे बीच है। आप उनके विचारों के साधक बनें। मैं अपनी और से बाबा साहब की जयंती की ढेरसारी बधाई और शुभकामनाएं देता हूं। बाबा साहब को अपने बीच पाने के लिए, देखने के लिए उनके विचारों और अनमोल वचन को आदर्श के रूप में अपनाएं।
सत्ता से दूर होती दिख रही भाजपा।
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सत्ता से दूर होती दिख रही भाजपा। भारत में कांग्रेस का इतिहास स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के साथ जुड़ा हुआ है। इसका गठन 8 दिसम्बर1885 में हुआ। भारत के राजनीतिक पटल पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उदय का इतिहास आज़ादी के पूर्व में जाता है, जब वर्ष 1925 में डॉक्टर हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) का गठन किया। राजनीतिक स्थिति को देखते हुए संघ परिवार ने राजनीतिक शाखा के तौर पर वर्ष 1951 में भारतीय जन संघ का गठन किया। देश के प्रथम चुनाव में इस पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्रदान किया गया। अब गौर करें तो हम पाते हैं कि कांग्रेस के पास 125 साल से ज्यादा का राजनीतिक अनुभव वहीं भाजपा,संध के पास 85 साल का अनुभव अपने आप में कई दशक को समेटे हुए है। जो यह दर्शाता है कि भारत की राष्ट्रीय पार्टियां अब तक भारत और इंडिया के फर्क को आसानी से समझने लगी है। हरबार की तरह इस बार भी 16वीं लोकसभा चुनाव में विकास का मुद्धा राजनीतिक पार्टियों के लिए सबसे उपर है। क्या विकास का पैमान सिर्फ चुनाव तक सिमित है या चुनाव जितने तक? कांग्रेस अब तक महंगाई,बेरोजगारी, भ्रष्टा
पार्टी में बढता मोदी क्रेज, बिगाड सकता है भाजपा का सियासी खेल।
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पार्टी में बढता मोदी क्रेज, बिगाड सकता है भाजपा का सियासी खेल। अपने कुशल कार्यों,गुजरात विकास मॉडल और चनाव प्रबंधन में महारत हासिल रखने वाले भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार श्री नरेन्द्र मोदी जी का बढता कद, भाजपा को सियासी खेल में कांग्रेस से उपर लाकर खडा तो किया है। लेकिन अपने आप को गुजरात से बाहर साबित करना मोदीजी के लिए अब भी चुनौति है। आज मोदी की छवि पार्टी से उपर है। यहां तक की कई कांग्रेसी नेताओं ने भी मान लिया है कि लोकसभा चुनाव भाजपा से नहीं बल्कि मोदी बनाम कांग्रेस है। टिकट बंटवारें से शुरू हुई लोकसभा का संखनाद तो शुरू हो गया लेकिन भाजपा का गृह युद्ध रूकने का नाम नहीं ले रहा है। टिकट बंटवारें में स्थानीय लोगों को हटाकर स्टार लोगों को टिकट देना भाजपा का फैसला गलत है या सही यह तो चुनाव परिणाम से साफ हो जाएगा। लेकिन आम जन में अपने प्रबंधन और जनसंपर्क में विशेषज्ञता हासिल रखने वाले मोदी जी को लेकर असंतोष की भावना उभरकर सामने आई है। गौर करें तो बनारस, देवडिया,बेगुसराय,नवादा,भोपाल और लखनउ जैसे कई विधानसभा क्षेत्रों में पांच साल तक पार्टी के
होली का रंग और सियासी पारा
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होली का रंग और सियासी पारा जैसे जैसे होली का माहोल बनता जा रहा है। आमजन होली के रंग में रंगने लगे हैं ठीक उसी तरह से भारतीय राजनीति का सियासी पारा भी होली के बहाने एक पार्टी दूसरे पार्टी को काला करने में लग गया है। तैयारी सभी पार्टियों की जोरों पर है। कौन किस पर भाडी परता है ये तो होली के बाद ही पता चलेगा। फिलहाल एक मोदी पर वार करने के लिए कांगेस, आम आदमी पार्टी, जदयू, राजद के अलावा ममता जी, मुलायम सिंह के साथ अखिलेश जी, उत्तरप्रदेश को मजबूत बनाने के लिए और मोदी को रोकने के लिए मायावती जी भी मुलायम के साथ हैं। ऐसे में सभी पार्टी के नेताओं ने अपनी अपनी होली की बंदुकें सीधे गुजरात की और सेट कर दिया है। गुजरात से अकेले मोदी जी है ऐसे में सियासी पारा को देखते हुए तस्वीर साफ है कि इस बार पूरा गुजरात काले रंगों से काला हो जाएगा। प्रशासन ने आम लोगों पहले ही चेता दिया और कहा है कि चुनाव को देखते हुए आपलोग रंग और पानी कम खर्च करें। टीवी चैनलों के कई अनूभवी पत्रकारों ने अनुमान लगाया है कि इसबार गुजारात को छोडकर सभी प्रदेशों में पानी की समस्या हो जाएगी। और गुजरात में पानी का लेवल 1
आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है।
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आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है। कम से कम एक दिन तो इसी बहाने महिलाओं के उत्थान और पतन पर चर्चा हो जाती है। आज देश के कई संस्थानों में महिलाओं से जुडी हुई तमाम समस्याओं का हल निकाला गया या निकाला जा रहा होगा। ऐसा लग रहा था जैसे आज के ब ाद महिलाओं के बारे में चर्चा करने के लिए कुछ बचेगा ही नहीं। सो सारे व्याख्याता ने एक एक करके महिलाओं से जुडी तमाम समस्याओं को अपने भाषण में हल कर दिया। हद तो तब हो जाती है जब कई व्याख्याता अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं की समस्या से आम जन को अबगत कराता है। जैसे वह पत्नी से सारी समस्याओं को पूछ कर आया हो। जब अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर भी महिलाओं की समस्या को पुरूष सुना रहा हो तो आप समझ सकते हैं कि महिलओं को कितना स्थान दिया जा रहा है। आज के दिन भी सभा संगोष्ठी में कई महिलाएं अपनी बातों को रख नहीं पाई। कारण सभा में महिलाओं पर बोलने के लिए देश भर से पुरूष महिला विचारक को बुलाया गया था। ऐसे में सभाा संगोष्ठी होने से सच्चाई सामने नहीं आ पाती है। आज के दिन तो कई लोग महिला दिवस की बधाईयां और शुभकामनाएं देकर अपने को समाज के मुख्य धा
भाजपा के राह में रोडा बना आम आदमी पार्टी।
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भाजपा के राह में रोडा बना आम आदमी पार्टी। कभी आम आदमी पार्टी को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन करने वाली भाजपा आज अपने चक्रव्यूह में फंसती नजर आ रही है। किसी ने सही ही कहा है जो जाल बनाता है वही एक दिन जाल में फंसता भी है। मोदी का नाम और गुजरा त विकास मॉडल के जरिए दिल्ली का ताज हासिल करने का सपना कहीं सपनों में न रह जाए। किसी ने सही ही कहा है बीज बबूल का हो तो आम नहीं फलेगा। फिर बबूल के बीज में कितना भी पानी डालो आम नहीं फल सकता है। समय स्थान और साधन के अनुसार परिवेश अपने आप परिवर्तित हो जाता है। फिलहाल समय साधन और स्थान सबकुछ कांग्रेस के पक्ष में है। सिर्फ मोदी को छोडकर। उदाहरण के रूप में आप कह सकते हैं समय 2014, साधन आम आदमी पार्टी जैसी पार्टी का साथ देना जिससे प्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस को लाभ और स्थान लोकसभा चुनाव। ये तीन बातें पूरी तरह से कांग्रेस के पक्ष्ा में दिखाई पड रही है। सवाल है कि क्या भ्रष्टाचार, महंगाई, रेप, सारे परिभाषा को आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर कांग्रेस ने अपने पापों को गंगा में धो लिया है? निष्कर्ष के रूप में कहें तो यह कहना गलत नहीं होगा क
जनसंचार का सबसे प्रभावी माघ्यम है सिनेमा।
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जनसंचार का सबसे प्रभावी माघ्यम है सिनेमा। कहा जाता है कि सिनेमा समाज में संदेश संप्रेषण का सबसे प्रभावी माध्यम है। अक्सर सिनेमा में नायक की जीत और खलनायक की हार होती है, और सिनेमा का पटाक्षेप हो जाता है। यह सदा सत्य है। सिनेमा में जब नायिका को नायक से प्यार हो जाता है और वह अपने प्यार को पाने के लिए अपने घर, मां, बाप को छोडकर नायक के साथ जाना चाहती है तो उसका बाप खलनायक हो जाता है। इस क्रम में सिनेमा देख रहे सारे दर्शकों की सहानुभूति नायक के साथ हो जाती है और लडकी का बाप खलनायक बन जाता है। दर्शक के नजर में लडकी का बाप सबसे बेकार और निक्कमा होता है। नायक को सहानुभूति देने में कई मां और बाप भी जो सिनेमा के दशर्क होते हैं। लेकिन जब अपनी बच्ची के साथ यह बात आती है तो वह खलनायक जीवन को ही पसंद करते हैं। ऐसा इसलिए की सिनेमा में आप काल्पनिक घटना मानकर मनोरंजन करते हैं। जब यही घटना वास्तविक रूप में आपके सामने आती है तो आपकी इज्जत, सामाजिक मान मर्यादा, मान सम्मान खोने का डर होता है। मेरा मानना है सिनेमा ने समाज को आइना दिखाने का काम तो किया लेकिन ऐनक के पीछे रंगीन कलई करना नहीं सिखाया।
बिहार में तीर के निशाने पर खिलना चाह रहा कमल .....
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बिहार में तीर के निशाने पर खिलना चाह रहा कमल ..... मोदी नाम की हवा बहुत तेजी से बिहार में फैल रही है जिसकी हवा कई हाथियों को मदमस्त करने में लगी है। यह हवा नेता परिवर्तन की होगी। सूत्रों के हवाले से मिली खबर के अनुसार जदयू के कई बडे नेता का लोकसभा चुनाव तक भाजपा में शामिल होने की खबर है। जदयू से आज तक बिधानसभा चुनाव लड रहे नेता भी भाजपा में शामिल होकर सांसद बनने का सपना देख रहे हैं। सत्रह साल गठबंधन और सत्ता की भूख से भाजपा के तेवर बिहार में उग्र दिख रहे हैं। कुछ भाजपा पार्टी कार्यकर्ता बात करने पर बताते हैं कि इस बार नीतीश कुमार को पता चल जाएगा। क्या पता चलेगा? ये तो समय ही बताएगा। फिलहाल भाजपा का कार्य जमीनी स्तर पर कितना चल रहा है ये तो लोकसभा चुनाव के परिणाम से साफ हो जाएगा। आम बातचीत में भाजपा कार्यकर्ता में उत्साह और विश्वास दिख रहा है। यह विश्वास वोट में कितना बदल पाएगा ये तो चुनाव परिणाम के बाद पता चलेगा। जदयू कार्यकर्ता नरम् और भाजपा कार्यकर्ता गरम् दिख रहे हैं।
ओपिनियन पोल अर्थात चुनाव से पूर्व अनुमान लगाना।
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ओपिनियन पोल अर्थात चुनाव से पूर्व अनुमान लगाना। अनुमान सही भी हो सकता है और गलत भी। 2004 के लोकसभा चुनाव में किस प्रकार सारी कंपनियों का ओपिनियन पोल फर्जी साबित हुआ था। ये प्रमाणित करता है कि इस तरह के ओपिनियन पोल जनता को बरगलाने का काम कर ती है। इस तरह के सर्वे में काफी छोटा सेंपल लिया जाता है। जिससे नतीजा सही नहीं आता है। चुनावों की तारीख जैसे जैसे करीब आती जा रही है। कांग्रेस की परेशानियां बढती दिख रही है। ओपिनियन पोल को लेकर मेरा मानना है कि इसमें कुछ स्च्चाई भी है और कुछ चालबाजी भी है। खैर चुनाव जीतना है सभी हथकंडे आपको अपनाने पडते हैं। चुनाव में किस पार्टी की जीत होगी यह कहना मुश्किल है लेकिन शोसल मीडिया और ओपिनियन पोल में कांग्रेस को मात दे रही है भाजपा। ओपिनियन पोल मनोवैज्ञानिक रूप से मतदाता और पार्टी दोनों को प्रभावित करता है। इस तरह के एजेंडा सेटिंग से वोटों की संख्यां में 1-5 प्रतिशत तक इजाफा होता है। जो पूरी तरह से चुनावी समीकरण को प्रभावित करती है। ओपिनियन पोल वर्तमान समय में ओपिनियन लीडर की भूमिका अदा कर रहा है। जो रातो रात मतदाता को प्रभावित कर सकता है। कोई भी
बलात्कार और आरोप
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बलात्कार और आरोप पहले तो रात में डर लगता था अब तो दिन में भी डर लगने लगा है। पता नहीं कब किसका दुष्कर्म हो जाए या कब किसी पर दुष्कर्म का आरोप लग जाए। दोनों स्थिती काफी खतरनाक होती है। जरा बच के भैया समय का चक्र सही नहीं चल रहा है इसलिए बच के निकलने में ही फायदा है। अनुभव और तर्क के आधार पर भी पता नहीं चल पाता है कि आखिर भारतीय लडकियां तेज रफतार से आधुनिक और विकसित हो गई है या पुरूषों के मनोविज्ञान और उसकी सोच सिर्फ महिलाओं के तन तक सिमित होकर रह गया है। दोनों स्थिती देश और समाज के हित में नहीं है। अफसोस पता ही नहीं चलता है कि आखिर समझाउं तो किसे समझाउं। देश की बडी समस्या है दुष्कर्म और बलात्कार की समस्या। यह शव्द टेलीविजन, अखबार और इंटरनेट पर प्रत्येक दिन बिना खोजे मोटे अक्षरों में लिखा मिलता है। पूरा देश आज भ्रष्टाचार से लडते लडते बलात्कार और दुष्कर्म जैसे शव्दों से लड रहा है। किसी का बस ही नहीं चल रहा है बस चले तो इसमें भी कांग्रेस या बीजेपी का हाथ बताकर मामला को दबा देता।
आम आदमी पार्टी की जीत
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आम आदमी पार्टी की जीत ने सच में साबित कर दिया है कि जनता जागरूक हो गई है। लेकिन सवाल है कि जनता अगर जागरूक हो गई है तो सिर्फ दिल्ली में ही परिवर्तन क्यों? मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ और राजस्थान में परिवर्तन क्यों नहीं ? क्या इस प्रदेश की ज नता जागरूक नहीं है या पढे लिखे लोग नहीं हैं। शायद ये भी कहना सही नहीं है, और ये कहकर छोड देना की जनता के पास कोई विकल्प नहीं है ये कहना भी गलत होगा क्योंकि इस बार नोटा का प्रयोग भी चुनाव में पहली बार किया गया था। ज्यादा से ज्यादा प्रतिशत में लोगों ने नोटा का बटन क्यों नहीं दबाया। सोचने वाली बात है, जनता जागरूक भी होती है तो दिल्ली से। जैसे मुंबई में फटा हुआ जिंस पहनने का चलन सबसे पहले आता है और बिहार, यूपी पहुंचते पहुंचते कम से कम दस बर्ष तो लग ही जाते हैं। इससे यह साफ होता है कि आम आदमी पार्टी को बिहार, यूपी पहुंचते पहुंचते दस साल जरूर लग जाएगा। क्योंकि दिल्ली की तर्ज पर बिहार, यूपी की जनता इंटरनेट और फेसबुक पर नहीं बल्कि खेतों और खलिहानों में ज्यादा समय बीताती हैं।
हम तुम्हारे हैं सनम
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हम तुम्हारे हैं सनम मैं अपनी श्रीमती जी से बहुत प्यार करता हूं। उसे जीवन में व सारा कुछ देना चाहता हूं जिसकी उसे चाहत है। उसे जीवन में हमेशा बहुत खुश देखना चाहता हूं। पर बदकिस्मती कहें व थोडा दूसरे तरह की खुशी और प्यार पाना चाहती है। जीवन के सफर में आगे बढना है तो आपको बहुत सारे कार्य करने होते हैं। इस तरह के सारे कार्य मेरी श्रीमतीजी को नागवर गुजरती है। अब मैं आपको उनकी खुशी वाली बातें बता देता हूं। सुबह दन्त मंजन एक साथ करें, चाय एक साथ हो, नाशता एक दूसरे को प्यार से खिलाएं, बाइक पे खाली जगह छोडकर सट कर बैठना, पार्टी में हाथ पकडकर चलना, ड्रेस उनके पसंद का पहनना, दिन का खाना मेरे पसंद का हो या न हो रात का खाना उनके पसंद का हो, फिर साथ में खाना, कभी कभी साथ में गाना गाना, घर से बाहर निकलने से पहले ही जल्दी आने का न्योता देना, बाहर निकलते ही हाथ थाम कर चलना जैसे मैं उसे छोडकर कहीं भागने वाला हूं। अब उसको कौन समक्षाए की दिनभर यही करूंगा तो काम कौन देखेगा। बार बार दुहराता हूं हम तुम्हारे हैं सनम फिर भी नहीं मानती। व्यापार घाटे में जा रहा है। मामला थोडा पेचीदा और उलझा हुआ है
फास्टफूड पर पली जेनरेशन को सबकुछ फास्ट चाहिए।
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फास्टफूड पर पली जेनरेशन को सबकुछ फास्ट चाहिए। शायद आपलोग या हमसभी ने न कभी इसके बारे में सोचा , और न कभी सोचने की जोखिम उठाई। जीवन के दौर में बचपन से ही इन बच्चों पर फास्टफूड अपना असर दिखाना शुरू कर देता है। फास्टफूड खाने वाले बच्चे अन्य बच्चों के मुकाबले मोटे होते हैं। उनका ग्रोथ रेसियो ज्यादा होता है। उदाहरण के रूप में आप देख सकते हैं – शरीर का तेजी से विकास। किसी भी लक्ष्य को तुरंत पाने की ललक , कम उम्र में विपरित लिंग के प्रति आकर्षण् , अपने बच्चों के उम्र से ज्यादा दिखना , शैतानी दिमाग तेज चलाना , ज्यादा सोचना , कम उम्र में जवान दिखना। ये सभी लक्षण किसी न किसी रूप में फास्टफूड खानेवाले बच्चों में पाया जाता है। इस रोग को बढाबा देने और इसके पालक बच्चे के अभिभावक हैं। हो सकता है आपके बच्चे फास्टफूड खाने के बाद भी इस रोग से ग्रसित न हों , लेकिन अगले जेनरेशन की जिम्मेदारी तो आप पर है।
दिल्ली में वोटरों का दिल बोल रहा है।
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दिल्ली में वोटरों का दिल बोल रहा है। चुनाव परिणाम से यह साफ हो गया है कि देश की जनता ने कांग्रेस का पूरी तरह से सफाया कर दिया है। आम आदमी पार्टी की सफलता उसकी मेहनता और ईमानदारी का कारण है जिसे जनता ने हाथों हाथ लिया। आम आदमी पार्टी की जीत देश की जनता के लिए शुभ संकेत है। भाजपा को जीत के लिए बधाई। भाजपा के नेतृत्व को इ्ंटरनेट से हटकर जमीन पे काम करने की जरूरत है। चुनाव परिणाम से यह साफ हो गया है कि जनता भाजपा के साथ है। नरेन्द्र मोदी फैक्टर काम कर रही है। कांग्रेस के लिए खतेर की धंटी बज गई है। चारो राज्यों में चित हुई दिख रही है कांगेस। दिल्ली में आम आदमी का दिल बोल रहा है। अब सवाल यह है कि क्या देश की सबसे बडी पार्टी कांग्रेस का देश से सफाया हो जाएगा?
आम आदमी पार्टी
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आम आदमी पार्टी आम आदमी पार्टी की जीत ने सच में साबित कर दिया है कि जनता जागरूक हो गई है। लेकिन सवाल है कि जनता अगर जागरूक हो गई है तो सिर्फ दिल्ली में ही परिवर्तन क्यों? मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ और राजस्थान में परिवर्तन क्यों नहीं ? क्या इस प्रदेश की ज नता जागरूक नहीं है या पढे लिखे लोग नहीं हैं। शायद ये भी कहना सही नहीं है, और ये कहकर छोड देना की जनता के पास कोई विकल्प नहीं है ये कहना भी गलत होगा क्योंकि इस बार नोटा का प्रयोग भी चुनाव में पहली बार किया गया था। ज्यादा से ज्यादा प्रतिशत में लोगों ने नोटा का बटन क्यों नहीं दबाया। सोचने वाली बात है, जनता जागरूक भी होती है तो दिल्ली से। जैसे मुंबई में फटा हुआ जिंस पहनने का चलन सबसे पहले आता है और बिहार, यूपी पहुंचते पहुंचते कम से कम दस बर्ष तो लग ही जाते हैं। इससे यह साफ होता है कि आम आदमी पार्टी को बिहार, यूपी पहुंचते पहुंचते दस साल जरूर लग जाएगा। क्योंकि दिल्ली की तर्ज पर बिहार, यूपी की जनता इंटरनेट और फेसबुक पर नहीं बल्कि खेतों और खलिहानों में ज्यादा समय बीताती हैं।
नववर्ष 2014 आपके लिए मंगलमय हो
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नववर्ष 2014 आपके लिए मंगलमय हो.........................। किसी के आने की खुशी और जाने का दुख होता है। साल या वर्ष का बदलना तो हजारों वर्ष पुराना है जैसे पुराने वस्त्रों को छोडकर आप नया वस्त्र धारण कर लेते हैं। कभी कभी आप पुराने कपडों के बा रे में भी मूल्यांकन करते हैं, दूसरों से तुलना करते हैं। वर्ष का बदलना कोई बडी बात नहीं है ये तो होना ही है लेकिन आप अपने आप में हुए परिवर्तन का मूल्यांकन जरूर करें। आप क्या थे? क्या हैं? कहां जाना है? समाज में आपने क्या योगदान दिया? इस तरह के कई सवाल हैं जो हम सभी से जुडा हुआ है। पौधे में फूल खीलने से पहले उसे पानी की सख्त जरूरत होती है ठीक उसी तरह से मनुष्य रूपी पौधे को अपने सोच और विचार को विकसित करने की जरूरत है। मैं अपने फेसबुक परिवार के सभी सदस्यों को नववर्ष के आगमन की बधाई देता हूं। जीवन के एक दो साल नहीं बल्कि आनेवाला सभी साल आपके लिए उत्साह और विश्वास से भरा हो। यह उत्साह और विश्वास आपको सदा अंधकार से प्रकाश की और बढनें की प्रेरणा दे। आपका हांथ हमेशा समाज के साथ हो।