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Showing posts from September, 2014

हम तुम्‍हारे हैं सनम

हम तुम्‍हारे हैं सनम मैं अपनी श्रीमती जी से बहुत प्‍यार करता हूं। उसे जीवन में व सारा कुछ देना चाहता हूं जिसकी उसे चाहत है। उसे जीवन में हमेशा बहुत खुश देखना चाहता हूं। पर बदकिस्‍मती कहें व थोडा दूसरे तरह की खुशी और प्‍यार पाना चाहती है।  जीवन के सफर में आगे बढना है तो आपको बहुत सारे कार्य करने होते हैं। इस तरह के सारे कार्य मेरी श्रीमतीजी को नागवर गुजरती है। अब मैं आपको उनकी खुशी वाली बातें बता देता हूं। सुबह दन्‍त मंजन एक साथ करें, चाय एक साथ हो, नाशता एक दूसरे को प्‍यार से खिलाएं, बाइक पे खाली जगह छोडकर सट कर बैठना, पार्टी में हाथ पकडकर चलना, ड्रेस उनके पसंद का पहनना, दिन का खाना मेरे पसंद का हो या न हो रात का खाना उनके पसंद का हो, फिर साथ में खाना, कभी कभी साथ में गाना गाना, घर से बाहर निकलने से पहले ही जल्‍दी आने का न्‍योता देना, बाहर निकलते ही हाथ थाम कर चलना जैसे मैं उसे छोडकर कहीं भागने वाला हूं। अब उसको कौन समक्षाए की दिनभर यही करूंगा तो काम कौन देखेगा। बार बार दुहराता हूं हम तुम्‍हारे हैं सनम फिर भी नहीं मानती। व्‍यापार घाटे में जा रहा है। मामला थोडा पेचीदा और उलझा

शिक्षक दिवस

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आज देश के सभी स्‍कूलों,कॉलेजों में भारत के प्रथम उपराष्‍ट्रपति और देश के द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाएगा। कहा जाता है कि शिक्षक राष्‍ट्र निर्माण, समाज निर्माण और युग प्रवर्तक होता है। वर्तमान समय में आधुनिक शिक्षा की बढती महत्‍ता ने शिक्षा को भी राजनीति का अखाडा बना दिया है। भारत की पूरी शिक्षा व्‍यवस्‍था किसी शिक्षक के पास नहीं बल्कि किसी  व्‍यवसायी के पास होता है।  भारत में गुरू शिष्‍य परंपरा आदिकाल से रही है। कहा जाता है कि गुरू बिना ज्ञान अधुरा होता है। गुरू की प्रासांगिकता भी आधुनिकता के दौर में बदलती जा रही है। अब पढाने वाले लोगों की इज्‍जत कम और नेता गुरू की इज्‍जत ज्‍यादा होती है क्‍योंकि उसकी सियासी पकड ज्‍यादा होती है। सियासी पकड के सामने वर्तमान समय की शिक्षा व्‍यवस्‍था कमजोर हो गई है। माना जाता है कि पढाई में कम भी हों तो चलेगा लेकिन सियासी चाल में ताश के पत्‍ते की तरह सिर्फ गुलाम और एक्‍का आना चाहिए। अगर आपमें ये तमाम खूबियां है तो आप भारत गुरू नहीं बल्कि विश्‍व गुरू हैं।  मैं अपने सभी शिक्षाविद गुरू जिस

राजनीति और पूंजीवादी व्‍यवस्‍था के मायने

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राजनीति और पूंजीवादी व्‍यवस्‍था दोनों के मायने पूरी तरह से अलग हैं। राजनीति जहां राज करने को तत्‍पर रहती है वहीं पूंजीवादी व्‍यवस्‍था पूंजी के माध्‍यम से गुलामी की डोर को बांध कर रखती है। अगर आप गौर से अध्‍ययन करें तो यह पाते हैं कि दोनों  का अर्थ समान है क्‍योंकि पूंजीपति पूंजी के माध्‍यम से शोषण करता है और राजनीति करने वाले आपके बीच रहकर आपका शोषण करता है। कहा जाता है कि जब सामांतवाद को उखाड फेंका गया था तो स्‍वतंत्र पूंजीवादी समाज का उदय हुआ था। उसी वक्‍त यह जाहिर हो गया था कि इस स्‍वतंत्रता का मतलब मेहनतकशों का उत्‍पीडन और शोषण की नई व्‍यवस्‍था का आगमन हो रहा है। शुरूआती समाज ने इस व्‍यवस्‍था की आलोचना की,उसकी भर्त्‍सना की,इसके विनाश का सपना देखा लेकिन काफी प्रयास के बाद भी इसे रोक नहीं सका। जिसका परिणाम आज देख रहे हैं। आज का मोदी युग पूरी तरह से पूंजीवादी युग है। इसमें जिसके पास पूंजी है उसका विकास होगा। बांकी बचे लोग गरीबी की मार से त्रस्‍त हो जाएंगे। आप मेट्राे में सवारी करने का सपना देख रहे हैं तो यह सही है लेकिन भारत की 90 प्रतिशत आबादी मैट्रो सेवा से दूर रह जाएगी। जि

मैं हूं अवसरवादी।

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धर्मवादी,जातिवादी,दलितवादी,स्वर्णवादी,पूंजीवादी, भाजपा, कांग्रेस, मुलायम, लालू और एक खेमा है अवसरवादी का। सोशल मीडिया से लेकर प्रकाशन और प्रसारण मीडिया तक इसका प्रभाव आसानी से देखा जा सकता है। सभी अपने अपने हक की लडाई लड  रहे हैं। देश के किसी भी मुद्धे को ये अपने अपेने नजरिए से देखते हैं। और तर्क भी इतना मजबूत की कुछ समय के लिए सही और गलत का फर्क समझ न आए। जिस देश में इतने वादी और नजरिए वाले लोग होंगे, उनका चश्‍मा उनके धर्म,जाति,स्‍वर्ण,दलित,भाजपा और कांग्रेस के नजरिए से देखता और बोलता है। इसमें कौन सा वादी भारतीय विकास की बात करता है। भारतीय गरीबों के लिए रोटी,कपडा और मकान की बात करता है यह मेरे समझ से बाहर है। कहा जाय तो गलत नहीं होगा कि अंधो के देश में आईना बेचता हूं। सभी वादी के उपर बैठे लोग मलाई खा रहे हैं और जनता बिना पीछे कलई किए हुए शिशे में अपना चेहरा देख रही है। जिसेमें कुछ दिखाई नहीं पड रहा है। ये सभी का विकास नहीं बल्कि अपना विकास और बिस्‍तार कर रहे हैं।
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महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिन्‍दी विश्‍वविद्यालय के संचार एवं मीडिया अध्‍ययन केंद्र के जूनियर छात्रों को संबोधित करते हुए।
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Niranjan Kumar