जनसंचार का सबसे प्रभावी माघ्यम है सिनेमा।
जनसंचार का सबसे प्रभावी माघ्यम है सिनेमा। कहा जाता है कि सिनेमा समाज में संदेश संप्रेषण का सबसे प्रभावी माध्यम है। अक्सर सिनेमा में नायक की जीत और खलनायक की हार होती है, और सिनेमा का पटाक्षेप हो जाता है। यह सदा सत्य है। सिनेमा में जब नायिका को नायक से प्यार हो जाता है और वह अपने प्यार को पाने के लिए अपने घर, मां, बाप को छोडकर नायक के साथ जाना चाहती है तो उसका बाप खलनायक हो जाता है। इस क्रम में सिनेमा देख रहे सारे दर्शकों की सहानुभूति नायक के साथ हो जाती है और लडकी का बाप खलनायक बन जाता है। दर्शक के नजर में लडकी का बाप सबसे बेकार और निक्कमा होता है। नायक को सहानुभूति देने में कई मां और बाप भी जो सिनेमा के दशर्क होते हैं। लेकिन जब अपनी बच्ची के साथ यह बात आती है तो वह खलनायक जीवन को ही पसंद करते हैं। ऐसा इसलिए की सिनेमा में आप काल्पनिक घटना मानकर मनोरंजन करते हैं। जब यही घटना वास्तविक रूप में आपके सामने आती है तो आपकी इज्जत, सामाजिक मान मर्यादा, मान सम्मान खोने का डर होता है। मेरा मानना है सिनेमा ने समाज को आइना दिखाने का काम तो किया लेकिन ऐनक के पीछे रंगीन कलई करना नहीं सिखाया।