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Showing posts from January, 2014

जनसंचार का सबसे प्रभावी माघ्यम है सिनेमा।

जनसंचार का सबसे प्रभावी माघ्यम है सिनेमा। कहा जाता है कि सिनेमा समाज में संदेश संप्रेषण का सबसे प्रभावी माध्यम है। अक्सर सिनेमा में नायक की जीत और खलनायक की हार होती है, और सिनेमा का पटाक्षेप हो जाता है। यह सदा सत्य है। सिनेमा में जब नायिका को नायक से प्या‍र हो जाता है और वह अपने प्यार को पाने के लिए अपने घर, मां, बाप को छोडकर नायक के साथ जाना चाहती है तो उसका बाप खलनायक हो जाता है। इस क्रम में  सिनेमा देख रहे सारे दर्शकों की सहानुभूति नायक के साथ हो जाती है और लडकी का बाप खलनायक बन जाता है। दर्शक के नजर में लडकी का बाप सबसे बेकार और निक्कमा होता है। नायक को सहानुभूति देने में कई मां और बाप भी जो सिनेमा के दशर्क होते हैं। लेकिन जब अपनी बच्ची के साथ यह बात आती है तो वह खलनायक जीवन को ही पसंद करते हैं। ऐसा इसलिए की सिनेमा में आप काल्पनिक घटना मानकर मनोरंजन करते हैं। जब यही घटना वास्‍‍तविक रूप में आपके सामने आती है तो आपकी इज्जत, सामाजिक मान मर्यादा, मान सम्मान खोने का डर होता है। मेरा मानना है सिनेमा ने समाज को आइना दिखाने का काम तो किया लेकिन ऐनक के पीछे रंगीन कलई करना नहीं सिखाया।

बिहार में तीर के निशाने पर खिलना चाह रहा कमल .....

बिहार में तीर के निशाने पर खिलना चाह रहा कमल ..... मोदी नाम की हवा बहुत तेजी से बिहार में फैल रही है जिसकी हवा कई हाथियों को मदमस्त करने में लगी है। यह हवा नेता परिवर्तन की होगी। सूत्रों के हवाले से मिली खबर के अनुसार जदयू के कई बडे नेता का  लोकसभा चुनाव तक भाजपा में शामिल होने की खबर है। जदयू से आज तक बिधानसभा चुनाव लड रहे नेता भी भाजपा में शामिल होकर सांसद बनने का सपना देख रहे हैं।       सत्रह साल गठबंधन और सत्ता की भूख से भाजपा के तेवर बिहार में उग्र दिख रहे हैं। कुछ भाजपा पार्टी कार्यकर्ता बात करने पर बताते हैं कि इस बार नीतीश कुमार को पता चल जाएगा। क्या पता चलेगा? ये तो समय ही बताएगा। फिलहाल भाजपा का कार्य जमीनी स्‍तर पर कितना चल रहा है ये तो लोकसभा चुनाव के परिणाम से साफ हो जाएगा। आम बातचीत में भाजपा कार्यकर्ता में उत्साह और विश्वास दिख रहा है। यह विश्वास वोट में कितना बदल पाएगा ये तो चुनाव परिणाम के बाद पता चलेगा। जदयू कार्यकर्ता नरम् और भाजपा कार्यकर्ता गरम् दिख रहे हैं।

ओपिनियन पोल अर्थात चुनाव से पूर्व अनुमान लगाना।

ओपिनियन पोल अर्थात चुनाव से पूर्व अनुमान लगाना। अनुमान सही भी हो सकता है और गलत भी। 2004 के लोकसभा चुनाव में किस प्रकार सारी कंपनियों का ओपिनियन पोल फर्जी साबित हुआ था। ये प्रमाणित करता है कि इस तरह के ओपिनियन पोल जनता को बरगलाने का काम कर ती है। इस तरह के सर्वे में काफी छोटा सेंपल लिया जाता है। जिससे नतीजा सही नहीं आता है। चुनावों की तारीख जैसे जैसे करीब आती जा रही है। कांग्रेस की परेशानियां बढती दिख रही है। ओपिनियन पोल को लेकर मेरा मानना है कि इसमें कुछ स्‍च्‍चाई भी है और कुछ चालबाजी भी है।       खैर चुनाव जीतना है सभी हथकंडे आपको अपनाने पडते हैं। चुनाव में किस पार्टी की जीत होगी यह कहना मुश्किल है लेकिन शोसल मीडिया और ओपिनियन पोल में कांग्रेस को मात दे रही है भाजपा। ओपिनियन पोल मनोवैज्ञानिक रूप से मतदाता और पार्टी दोनों को प्रभावित करता है। इस तरह के एजेंडा सेटिंग से वोटों की संख्‍यां में 1-5 प्रतिशत तक इजाफा होता है। जो पूरी तरह से चुनावी समीकरण को प्रभावित करती है। ओपिनियन पोल वर्तमान समय में ओपिनियन लीडर की भूमिका अदा कर रहा है। जो रातो रात मतदाता को प्रभावित कर सकता है। कोई भी

बलात्‍कार और आरोप

बलात्‍कार और आरोप पहले तो रात में डर लगता था अब तो दिन में भी डर लगने लगा है। पता नहीं कब किसका दुष्‍कर्म हो जाए या कब किसी पर दुष्‍कर्म का आरोप लग जाए। दोनों स्थिती काफी खतरनाक होती है। जरा बच के भैया समय का चक्र सही नहीं चल रहा है इसलिए बच के निकलने में ही  फायदा है। अनुभव और तर्क के आधार पर भी पता नहीं चल पाता है कि आखिर भारतीय लडकियां तेज रफतार से आधुनिक और विकसित हो गई है या पुरूषों के मनोविज्ञान और उसकी सोच सिर्फ महिलाओं के तन तक सिमित होकर रह गया है। दोनों स्थिती देश और समाज के हित में नहीं है। अफसोस पता ही नहीं चलता है कि आखिर समझाउं तो किसे समझाउं।       देश की बडी समस्‍या है दुष्‍कर्म और बलात्‍कार की समस्‍या। यह शव्‍द टेलीविजन, अखबार और इंटरनेट पर प्रत्‍येक दिन बिना खोजे मोटे अक्षरों में लिखा मिलता है। पूरा देश आज भ्रष्‍टाचार से लडते लडते बलात्‍कार और दुष्‍कर्म जैसे शव्‍दों से लड रहा है। किसी का बस ही नहीं चल रहा है बस चले तो इसमें भी कांग्रेस या बीजेपी का हाथ बताकर मामला को दबा देता।

आम आदमी पार्टी की जीत

आम आदमी पार्टी की जीत ने सच में साबित कर दिया है कि जनता जागरूक हो गई है। लेकिन सवाल है कि जनता अगर जागरूक हो गई है तो सिर्फ दिल्‍ली में ही परिवर्तन क्‍यों? मध्‍यप्रदेश, छत्‍तीसगढ और राजस्‍थान में परिवर्तन क्‍यों नहीं ? क्‍या इस प्रदेश की ज नता जागरूक नहीं है या पढे लिखे लोग नहीं हैं। शायद ये भी कहना सही नहीं है, और ये कहकर छोड देना की जनता के पास कोई विकल्‍प नहीं है ये कहना भी गलत होगा क्‍योंकि इस बार नोटा का प्रयोग भी चुनाव में पहली बार किया गया था। ज्‍यादा से ज्‍यादा प्रतिशत में लोगों ने नोटा का बटन क्‍यों नहीं दबाया।          सोचने वाली बात है, जनता जागरूक भी होती है तो दिल्‍ली से। जैसे मुंबई में फटा हुआ जिंस पहनने का चलन सबसे पहले आता है और बिहार, यूपी पहुंचते पहुंचते कम से कम दस बर्ष तो लग ही जाते हैं। इससे यह साफ होता है कि आम आदमी पार्टी को बिहार, यूपी पहुंचते पहुंचते दस साल जरूर लग जाएगा। क्‍योंकि दिल्‍ली की तर्ज पर बिहार, यूपी की जनता इंटरनेट और फेसबुक पर नहीं बल्कि खेतों और खलिहानों में ज्‍यादा समय बीताती हैं।

हम तुम्‍हारे हैं सनम

हम तुम्‍हारे हैं सनम मैं अपनी श्रीमती जी से बहुत प्‍यार करता हूं। उसे जीवन में व सारा कुछ देना चाहता हूं जिसकी उसे चाहत है। उसे जीवन में हमेशा बहुत खुश देखना चाहता हूं। पर बदकिस्‍मती कहें व थोडा दूसरे तरह की खुशी और प्‍यार पाना चाहती है।  जीवन के सफर में आगे बढना है तो आपको बहुत सारे कार्य करने होते हैं। इस तरह के सारे कार्य मेरी श्रीमतीजी को नागवर गुजरती है। अब मैं आपको उनकी खुशी वाली बातें बता देता हूं। सुबह दन्‍त मंजन एक साथ करें, चाय एक साथ हो, नाशता एक दूसरे को प्‍यार से खिलाएं, बाइक पे खाली जगह छोडकर सट कर बैठना, पार्टी में हाथ पकडकर चलना, ड्रेस उनके पसंद का पहनना, दिन का खाना मेरे पसंद का हो या न हो रात का खाना उनके पसंद का हो, फिर साथ में खाना, कभी कभी साथ में गाना गाना, घर से बाहर निकलने से पहले ही जल्‍दी आने का न्‍योता देना, बाहर निकलते ही हाथ थाम कर चलना जैसे मैं उसे छोडकर कहीं भागने वाला हूं। अब उसको कौन समक्षाए की दिनभर यही करूंगा तो काम कौन देखेगा। बार बार दुहराता हूं हम तुम्‍हारे हैं सनम फिर भी नहीं मानती। व्‍यापार घाटे में जा रहा है। मामला थोडा पेचीदा और उलझा हुआ है

फास्‍टफूड पर पली जेनरेशन को सबकुछ फास्‍ट चाहिए।

फास्‍टफूड पर पली जेनरेशन को सबकुछ फास्‍ट चाहिए।    शायद आपलोग या हमसभी ने न कभी इसके बारे में सोचा , और न कभी सोचने की जोखिम उठाई। जीवन के दौर में बचपन से ही इन बच्‍चों पर फास्‍टफूड अपना असर दिखाना शुरू कर देता है। फास्‍टफूड खाने वाले बच्‍चे अन्‍य बच्‍चों के मुकाबले मोटे होते हैं। उनका ग्रोथ रेसियो ज्‍यादा होता है। उदाहरण के रूप में आप देख सकते हैं – शरीर का तेजी से विकास। किसी भी लक्ष्‍य को तुरंत पाने की ललक , कम उम्र में विपरित लिंग के प्रति आकर्षण्‍ , अपने बच्‍चों के उम्र से ज्‍यादा दिखना , शैतानी दिमाग तेज चलाना , ज्‍यादा सोचना , कम उम्र में जवान दिखना। ये सभी लक्षण किसी न किसी रूप में फास्‍टफूड खानेवाले बच्‍चों में पाया जाता है। इस रोग को बढाबा देने और इसके पालक बच्‍चे के अभिभावक हैं। हो सकता है आपके बच्‍चे फास्‍टफूड खाने के बाद भी इस रोग से ग्रसित न हों , लेकिन अगले जेनरेशन की जिम्‍मेदारी  तो आप पर है।

दिल्‍ली में वोटरों का दिल बोल रहा है।

दिल्‍ली में वोटरों का दिल बोल रहा है। चुनाव परिणाम से यह साफ हो गया है कि देश की जनता ने कांग्रेस का पूरी तरह से सफाया कर दिया है। आम आदमी पार्टी की सफलता उसकी मेहनता और ईमानदारी का कारण है जिसे जनता ने हाथों हाथ लिया। आम आदमी पार्टी की जीत देश की जनता के लिए शुभ संकेत है। भाजपा को जीत के लिए बधाई। भाजपा के नेतृत्‍व को इ्ंटरनेट से हटकर जमीन पे काम करने की जरूरत है। चुनाव परिणाम से यह साफ हो गया है कि जनता भाजपा के साथ है। नरेन्‍द्र मोदी फैक्‍टर काम कर रही है। कांग्रेस के लिए खतेर की धंटी बज गई है। चारो राज्‍यों में चित हुई दिख रही है कांगेस। दिल्‍ली में आम आदमी का दिल बोल रहा है। अब सवाल यह है कि क्‍या देश की सबसे बडी पार्टी कांग्रेस का देश से सफाया हो जाएगा?

आम आदमी पार्टी

  आम आदमी पार्टी आम आदमी पार्टी की जीत ने सच में साबित कर दिया है कि जनता जागरूक हो गई है। लेकिन सवाल है कि जनता अगर जागरूक हो गई है तो सिर्फ दिल्‍ली में ही परिवर्तन क्‍यों? मध्‍यप्रदेश, छत्‍तीसगढ और राजस्‍थान में परिवर्तन क्‍यों नहीं ? क्‍या इस प्रदेश की ज नता जागरूक नहीं है या पढे लिखे लोग नहीं हैं। शायद ये भी कहना सही नहीं है, और ये कहकर छोड देना की जनता के पास कोई विकल्‍प नहीं है ये कहना भी गलत होगा क्‍योंकि इस बार नोटा का प्रयोग भी चुनाव में पहली बार किया गया था। ज्‍यादा से ज्‍यादा प्रतिशत में लोगों ने नोटा का बटन क्‍यों नहीं दबाया। सोचने वाली बात है, जनता जागरूक भी होती है तो दिल्‍ली से। जैसे मुंबई में फटा हुआ जिंस पहनने का चलन सबसे पहले आता है और बिहार, यूपी पहुंचते पहुंचते कम से कम दस बर्ष तो लग ही जाते हैं। इससे यह साफ होता है कि आम आदमी पार्टी को बिहार, यूपी पहुंचते पहुंचते दस साल जरूर लग जाएगा। क्‍योंकि दिल्‍ली की तर्ज पर बिहार, यूपी की जनता इंटरनेट और फेसबुक पर नहीं बल्कि खेतों और खलिहानों में ज्‍यादा समय बीताती हैं।

नववर्ष 2014 आपके लिए मंगलमय हो

नववर्ष 2014 आपके लिए मंगलमय हो.........................। किसी के आने की खुशी और जाने का दुख होता है। साल या वर्ष का बदलना तो हजारों वर्ष पुराना है जैसे पुराने वस्‍त्रों को छोडकर आप नया वस्‍त्र धारण कर लेते हैं। कभी कभी आप पुराने कपडों के बा रे में भी मूल्‍यांकन करते हैं, दूसरों से तुलना करते हैं। वर्ष का बदलना कोई बडी बात नहीं है ये तो होना ही है लेकिन आप अपने आप में हुए परिवर्तन का मूल्‍यांकन जरूर करें। आप क्‍या थे? क्‍या हैं? कहां जाना है? समाज में आपने क्‍या योगदान दिया? इस तरह के कई सवाल हैं जो हम सभी से जुडा हुआ है। पौधे में फूल खीलने से पहले उसे पानी की सख्‍त जरूरत होती है ठीक उसी तरह से मनुष्‍य रूपी पौधे को अपने सोच और विचार को विकसित करने की जरूरत है। मैं अपने फेसबुक परिवार के सभी सदस्‍यों को नववर्ष के आगमन की बधाई देता हूं। जीवन के एक दो साल नहीं बल्कि आनेवाला सभी साल आपके लिए उत्‍साह और विश्‍वास से भरा हो। यह उत्‍साह और विश्‍वास आपको सदा अंधकार से प्रकाश की और बढनें की प्रेरणा दे। आपका हांथ हमेशा समाज के साथ हो।