अपना बहुमूल्‍य वोट दो और लोकतंत्र को लूटोतंत्र बनाओ।



देश में 16वें लोकतंत्र का पर्व लोकसभा चुनाव अब समाप्ति की अौर बढ रहा है। इससे पहले हमने 15 बार लोकसभा का चुनाव किया अौर अपने अपने उम्मीदवार को जीता कर गांव की गली से संसद तक पहुंचाया। जिसको गांव से संसद तक पहुंचाया वह उम्मीदवार गांव छोडकर शहर की अौर चल दिया। हरबार की तरह इस बार भी महांपर्व में आमजनता अपना बहुमूल्य‍ वोट देकर लोकतंत्र को मजबूत कर रही है।
उम्मीदवारों का चयन जाती,धर्म,समप्रदाय के आधार पर हो रहा है, वोट का प्रतिशत बढाकर लोकतंत्र को मजबूत कर रहे हैं, चुनावों में पार्टियों के द्रारा कुछ कर गुजरने की बात हो तो बिना नल के पानी लाने की बात, बिना सेक्स के बच्चे पैदा करना, अब पुरूष भी करेगा बच्चा पैदा, सभी परिवार को निशुल्क सालाना 25-25 लाख बिना काम किए हुए मिलेंगे, घर के सारे कामकाज के लिए रॉवर्ट की व्यवस्था प्रत्येक परिवार को सिर्फ पांच रूपए में, अब महिलाआें को आराम ही आराम इत्यादी और भी कई दावे हैं जो प्रत्येक चुनाव की तरह इसबार भी किया जा रहा है।
लोकतंत्र के मुर्ख हमसभी मतदाता इस बार भी गुमराह होकर अपने मत को अधिकार समझकर किसी न किसी को अपना वोट दिया। सवाल वोट देने या नही देने का नहीं है, सवाल है देश में विकास और बदलाव का, परिवर्तन की व्यार का, ये व्यार 15 लोकसभा बीत जाने के बाद भी दिखाई नहीं पड रहा है। 1952-53 के समय की समस्या आज भी ज्यों के त्यों पडा हुआ है क्यों ? किसी भी चुनाव में इस मुद्धे को कोई भी पक्ष नहीं उठाता है।
आजादी के 67 साल बाद भी भारत में नेताओं को बोलेने नहीं आता है। चुनाव आयोग भारत में मैनेजर के रूप में काम कर रही है। यह पूरी तरह से दंतविहिन हाथी की तरह है जिसके पास शरीर तो है लेकिन दांत नहीं। यह चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती है। आजम खां,मुलायम सिंह, अमित शाह जैसे नेताओं को पूरा चुनाव बोलने की इजाजत नहीं देनी चाहिए सो हमारा चुनाव आयोग चार दिन के बाद फिर से उन्हें बोलने और कहीं आने जाने की इजाजत दे देती है ऐसे में चुनाव आयोग की महत्ता भी धीरे धीरे खत्म‍ होते जा रही है।
आपका वोट आपका लोकतंत्र सिर्फ चुनाव तक ही क्यों ? उसके बाद आपका लोकतंत्र कहां चला जाता है। चुनाव से पूर्व हाथ जोडकर वोट मांगने वाले नेता उस लोकतंत्र के हिस्से को पहचानने से भी इंकार कर देता है। क्या लोकतंत्र का पर्व सिर्फ चुनावों तक सीमित है? लोकतंत्र के नाम पर देश की आमजनता खुद को नेताओं के हाथ अपने आप को गिरबी रख देती है पांच साल के लिए कुछ ऐसा ही प्रतित हो रहा है चुनावी दावे से। कुछ भी बोलो जनता तो वोट जरूर देगी।
लोकतंत्र की दुहाई देते हुए भारत की राजनीति तिलक,गमछा,टोपी,जाती,धर्म,जूता,चप्पल,झाडूतंत्र तक पहुंच गई है। लाेकतंत्र की दुर्दशा के लिए लोकतंत्र के हितैशी ही पूरी तरह से जिम्मेदार हैं। आप अपना मत किसी भी पार्टी को दें देश का भविष्य नहीं बदलने वाला है। देश को तरक्की‍ के रास्ते पर लाना है तो देश के बडे पत्रकार,नेता जो दलाल की भूमिका में हैं उसे बदलना जरूरी है अन्यथा सरकार कोई भी हो देश की तरक्की में बाधा ही बाधा है। वोट के नाम पर लोकतंत्र और बाद में जेबभरो तंत्र जारी रहेगा।

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