मनुष्य स्वभातः एक जिज्ञासु प्राणी है। आदि काल से ही वह प्रकृति , देश दुनिया , समाज एंव ब्रहमांड के बारे में जानने को उत्सुक रहा है। अपना , अपने समाज , अपने व्यवहार का या सामाजिक घटनाओं का अध्ययन मानव के लिए रोचक होता है। शोध मानव ज्ञान का एक अविभाज्य अंग है। जैस कि '' हेरिंग '' ने 'Reserch for public policy' में लिखा है कि जिस प्रकार सब्जी में नमक का महत्व है उसी प्रकार शोध का जीवन में महत्व है। आज मानव जीवन में जो कुछ भी है सब शोध एंव अनुसंधान का ही प्रतिफल है , अनवरत शोध एंव अनुसंधानों की सहायता से ही समाज निरंतर गतिशील व विकासशील रहा है। इस गतिशीलता को बनाएं रखने के लिए शोध मनमाने ढंग से नही किया जा सकता है। निरीक्षण-परीक्षण के प्रयोग पर अधारित वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग करने पर ही सत्य को खोजा जा सकता है , सामाजिक घटनाओ पर संचार प्रभाव के संबंध में सत्य की खोज ही संचार शोध है। जब हम संचार शोध की चर्चा करते है तो इसका तात्पर्य मुख्य रूप से जनसंचार प्रक्रिया एंव संचार के प्रभावो का वैज्ञानिक अध्ययन करना है। जिससे किसी तथ्यात्मक निष्कवर्ष पर प
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