बिहार में विकास नहीं जाति को मिलेगा बोट ...

बिहार में विकास नहीं जाति को मिलेगा बोट ...
बिहार में चुनाव से पहले सियासी घमासान तेज हो गया है। कोई जाति की राजनीति करेगा तो कोई विकास की, कोई भगवा लहराएगा तो कोई सांप्रदायिक ताकत को जड से उखाडने की बात करेगा, किसी को दलितों की चिंता होगी तो किसी को सवर्णों की। फिलहाल बिहारी राजनीति में झाडू का आना बांकी है जो पूरे बिहार को लोकपाल के माध्यम से व्यवस्थित कर देगा।
सत्ता का सुख किसे नहीं चाहिए। फिर भी चुनावों में कोई त्याग कर रहा है तो कोई बिहार बचाने के लिए जहर पी रहा है। कभी जंगल राज की दुहाई देने वाले आज जंगल में ही मंगल कर रहे हैं तो कभी दलितों के हित की लडाई लडने वाले जीतन राम मांक्षी भी आज बीजेपी की गोद में समा गए हैं।
आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा, राजद, कांग्रेस, बसपा और जदयू के अलावा जीतन राम मांझी की हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा, सांसद पप्पू यादव की नई पार्टी जनाधिकार मोर्चा और पूर्व सांसद और पूर्व केन्द्रीय मंत्री नागमणि की समरस पार्टी, उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और रामविलास की लोजपा सहित वामदल भी इस चुनावी समर में ताल ठोंकने की तैयारी में जुटी है।
बिहार का जातिगत समीकरण - अत्यधिक पिछड़ी जाति 21.1%, मुस्लिम 14.7%, यादव 14.4%, ब्राह्मण 5.7%, महादलित 10 %, दलित 4.2%, कायस्थ 1.5%, भूमिहार 4.7%, राजपूत 5.2%, कुर्मी 5.0 %, और बनिया 7.1% है। बिहार में हमेशा की तरह इस बार भी जातिगत समीकरण हावी रहेगा। सभी राजनीतिक दलों की निगाहें जातिगत समीकरण पर टिकी है।

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