हिन्‍दी हैं हम वतन हैं हिन्‍दुस्‍तां हमारा।



Add caption

किसी ने सही ही कहा है नाम में क्या रखा है? भारत को भारत कहें या इंडिया क्या फर्क पडता है? नाम तो सिर्फ उस व्यक्ति, वस्तु की पहचान को इंगित करता है। भारतीय इतिहास कई वीर गाथाओं को अपने आप में समेटे हुए है। इतिहास यह दर्शाता है कि हम भारत की यादों में लाश के साथ कफन बनकर आए हैं। लाश के अंतिम संस्कार के बाद कफन को उसके साथ दफना दिया जाता है या जला दिया जाता है। कुछ ऐसा ही प्रतित हो रहा है जैसे भारत की आत्मा और उसके कफन को सदा के लिए दफनाने या जलाने का प्रयास सरकार के द्वारा किया जा रहा है। बात भारतीय आजादी की हो या देश पर किसी तरह के संकट का सभी क्षेत्रों में संकटमोचन का काम हिन्दी ने किया है। भारत के ज्यादातर विद्धानों ने हिन्दी में काम किया है। आज भी भारत की आधी से ज्यादा आवादी हिन्दी में काम करना पसंद कर रही है।

हिन्दी हैं हम बतन है हिन्दुस्तां हमारा। यह नारा वर्तमान समय में देखा जाए तो ऐसा लगता है जैसे अंधकार, सुनसान पहाडी इलाके में कोई विलाप कर अपने परिचित को बुला रहा है, किसी से मदद की गुहार लगा रहा हो लेकिन आज इसके आगे पीछे कोई नहीं है। जिसने जीवन भर हिन्दी की कमाई खाई, हिन्दी ने उसका भरण पोषण किया, हिन्दी ने उसे संवाद करना सिखलाया, हिन्दी ने अपनों को अपना कहना सिखलाया, हिन्दी ने सपना दिखलाया। आज वही हिन्दी बेगानी होती जा रही है। हिन्दी को मजबूत करने के लिए, उसके सपने पाने के लिए, हिन्दी में काम करने के लिए, देश के कर्णधार युवाओं को लाठी की चोट खानी पड रही है। लाठी की चोट से लहूलुहान क्रांतिकारी, युवाओं के मुस्कुराते चेहरे को देखकर आजादी के दिवाने गणेश शंकर विद्यार्थी, भगत सिंह, खुदिराम बोस की याद ताजी हो जाती है। देश में जब जब यूपीएससी और हिन्दी की बात होगी आपकी याद गणेश शंकर विद्यार्थी, भगत सिंह, खुदिराम बोस की तरह ताजी हो जाएगी। आप धन्य हैं। आपको सलाम।

Comments

Popular posts from this blog

विज्ञापन का इतिहास अर्थ,परिभाषा,प्रकार एवं आचार संहिता

जनसंचार का सबसे प्रभावी माघ्यम है सिनेमा।

संचार शोध