डा. कठेरिया के नेतृत्व में वर्धा शहर के मोबाइल यूजरों पर हुआ शोध

मेमोरी लॉस के शिकार हो रहे मोबाइल उपभोक्ता, मानवीय व्यवहार में बदलाव का कारण बन रहे मोबाइल

करीब 80 प्रतिशत लोगों का मानना है कि मोबाइल उपयोग करने से समाज में अपराधिक घटनाओं में वृद्धि हो रही है। अपराधिक घटनाओं के षड़यंत्र रचने में मोबाइल तकनीक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है यह प्रतिशत तेजी से बढ़ा है। वहीं 60 प्रतिशत लोगों का मानना है कि मोबाइल क्रांति से सामाजिक सशक्तिकरण की गति भी तेज हुई है।  स्वास्थ्य मंत्रालाय द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में विभिन्न मंत्रालयों की समिति आईएमसी ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा था कि मोबाइल मानव शरीर पर कई हानिकारक प्रभाव डाल रहा हैं। 
डॉ. धरवेश कठेरिया
वर्धा, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के संचार एवं मीडिया अध्ययन केंद्र के सहायक प्रोफेसर डा. धरवेश कठेरिया के नेतृत्व में वर्धा शहर के प्रतिभागियों पर ‘मोबाइल उपयोगकर्ता का मानवीय व्यवहार पर प्रभाव’ विषय पर किए गए शोध में कई आंकड़े चैंकाने वाले सामने आए। शोध के मुताबिक मोबाइल मानवीय व्यवहार में बदलाव का सबसे महत्वपूर्ण कारण बन रहा है। मोबाइल का ज्यादा उपयोग करने वाले लोग अपनी यादास्त क्षमता खोते जा रहे हैं। जिससे उनकी सोचने-समझने की क्षमता भी प्रभावित हो रही है।

दुनिया के पहले मोबाइल फोन का प्रदर्शन मोटोरोला के डा. मार्टिन कपूर ने सन 1973 में किया था। इन मोबाइल फोन के पहले भी रेडियो फोन थे, पर उनमें और सेल्युलर फोन में अंतर था। तब किसी ने यह सोचा भी नहीं था कि आज मोबाइल हमारे समाज के लिए सबसे बड़ी समस्या बनेगा। आज भारत में लगभग 90 करोड़ मोबाइल उपभोक्ता हैं। आज छोटे बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्ग तक लगभग हर उम्र के लोग मोबाइल के उपयोगकर्ता हैं। मोबाइल का दखल हमारे जीवन में बढ़ता ही जा रहा है। तथ्यों के अनुसार 95 प्रतिशत लोगों का मानना है कि वर्तमान समय में मोबाइल सूचना आदान-प्रदान का सबसे प्रभावी एवं सशक्त माध्यम है। वहीं 42 प्रतिशत लोगों का मानना है कि मोबाइल का उपयोग करने से परिवार, दोस्त, कार्यस्थल एवं अन्य सदस्यों के साथ उनके व्यवहार में परिवर्तन आया है। 

शोध अध्ययन में डा. कठेरिया के अलावा संचार एवं मीडिया अध्ययन केंद्र के सहायक प्रोफेसर, संदीप कुमार वर्मा, पीएच.डी. शोधार्थी, निरंजन कुमार, एमएससी इलेक्ट्रानिक मीडिया के छात्र, पंकज कुमार, पूर्णिमा झा, एवं आईसीएसएसआर परियोजना के शोध सहायक, नीरज कुमार सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। शोध को मूर्त रूप देने के लिए तथ्य संकलन हेतु सौ से अधिक मोबाइल उपयोगकर्ताओं को शामिल किया गया। सर्वे में 18 वर्ष से अधिक उम्र के महिला व पुरुष प्रतिभागियों ने अपनी राय दी। 

शोध के दौरान यह पाया गया कि ज्यादातर लोग किसी संदेश या मिस्डकाल के संदेह में बारबार मोबाइल स्क्रीन देखते रहते हैं। जिससे वे ठीक से नींद न आने और एकाग्रता की कमी से ग्रसित हो रहे हैं। इसके अलावा यादास्त की कमी, सिरदर्द, थकान, पाचनतंत्र में गड़बड़ी की समस्या भी सामने आ रही है।
शोध का हवाला देते हुए डा. कठेरिया ने कहा कि मोबाइल मानव जीवन का महत्वर्पूण हिस्सा बन गया है जिसके बिना आप जीवन की कल्पना नहीं कर सकते हैं। ऐसे में मोबाइल के उपयोग में सावधानी वरतना अति आवश्यक है। मोबाइल का सावधानी से उपयोग ही सुरक्षा है। युवाओं में मोबाइल के प्रति जरूरत से अधिक लगाव भी नुकसानदेह है। मोबाइल का उपयोग करें, दुरूपयोग नहीं। वैश्विक क्रांति के समय में मोबाइल का इस्तेमाल कैसे करें और किसलिए कर रहे हैं ये सोचना जरूरी है। मोबाइल को आप अपनी ताकत बनाएं न कि कमजोरी। 

शोध की रिपोर्ट के अनुसार मोबाइल सूचना क्रांति का सबसे महत्वपूर्ण औजार है और मोबाइल व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास में सहायक है। मोबाइल उपयोगकर्ताओं में आ रहे मानवीय बदलाव को बेहतर करने के लिए मोबाइल का उपयोग सावधानी से करना चाहिए। सूचना समाज में मोबाइल आज शक्ति का परिचायक भी बन गया है। लेकिन दूसरी ओर यह भी पाया गया कि ज्यादातर लोग मोबाइल पर बात करते हुए सही जानकारी नहीं देते हैं। मोबाइल के अधिक उपयोग से व्यक्ति की कार्यक्षमता भी प्रभावित हो रही है।

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