मैं हूं अवसरवादी।
धर्मवादी,जातिवादी,दलितवादी,स्वर्णवादी,पूंजीवादी, भाजपा, कांग्रेस, मुलायम, लालू और एक खेमा है अवसरवादी का। सोशल मीडिया से लेकर प्रकाशन और प्रसारण मीडिया तक इसका प्रभाव आसानी से देखा जा सकता है। सभी अपने अपने हक की लडाई लड रहे हैं। देश के किसी भी मुद्धे को ये अपने अपेने नजरिए से देखते हैं। और तर्क भी इतना मजबूत की कुछ समय के लिए सही और गलत का फर्क समझ न आए। जिस देश में इतने वादी और नजरिए वाले लोग होंगे, उनका चश्मा उनके धर्म,जाति,स्वर्ण,दलित,भाजपा और कांग्रेस के नजरिए से देखता और बोलता है। इसमें कौन सा वादी भारतीय विकास की बात करता है। भारतीय गरीबों के लिए रोटी,कपडा और मकान की बात करता है यह मेरे समझ से बाहर है।
कहा जाय तो गलत नहीं होगा कि अंधो के देश में आईना बेचता हूं। सभी वादी के उपर बैठे लोग मलाई खा रहे हैं और जनता बिना पीछे कलई किए हुए शिशे में अपना चेहरा देख रही है। जिसेमें कुछ दिखाई नहीं पड रहा है। ये सभी का विकास नहीं बल्कि अपना विकास और बिस्तार कर रहे हैं।
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