राजनीति और पूंजीवादी व्‍यवस्‍था के मायने


राजनीति और पूंजीवादी व्‍यवस्‍था दोनों के मायने पूरी तरह से अलग हैं। राजनीति जहां राज करने को तत्‍पर रहती है वहीं पूंजीवादी व्‍यवस्‍था पूंजी के माध्‍यम से गुलामी की डोर को बांध कर रखती है। अगर आप गौर से अध्‍ययन करें तो यह पाते हैं कि दोनों का अर्थ समान है क्‍योंकि पूंजीपति पूंजी के माध्‍यम से शोषण करता है और राजनीति करने वाले आपके बीच रहकर आपका शोषण करता है।
कहा जाता है कि जब सामांतवाद को उखाड फेंका गया था तो स्‍वतंत्र पूंजीवादी समाज का उदय हुआ था। उसी वक्‍त यह जाहिर हो गया था कि इस स्‍वतंत्रता का मतलब मेहनतकशों का उत्‍पीडन और शोषण की नई व्‍यवस्‍था का आगमन हो रहा है। शुरूआती समाज ने इस व्‍यवस्‍था की आलोचना की,उसकी भर्त्‍सना की,इसके विनाश का सपना देखा लेकिन काफी प्रयास के बाद भी इसे रोक नहीं सका। जिसका परिणाम आज देख रहे हैं।
आज का मोदी युग पूरी तरह से पूंजीवादी युग है। इसमें जिसके पास पूंजी है उसका विकास होगा। बांकी बचे लोग गरीबी की मार से त्रस्‍त हो जाएंगे। आप मेट्राे में सवारी करने का सपना देख रहे हैं तो यह सही है लेकिन भारत की 90 प्रतिशत आबादी मैट्रो सेवा से दूर रह जाएगी। जिनके पास खाने को रोटी नहीं है वह व्‍यक्ति मेट्रो में सवार होना चाहता है तो उसे कम से कम 4000 रूपए अनुमानित होना चाहिए यह ज्‍यादा भी हो सकता है। ऐसे में कितने लोग मेट्रो की सवारी कर पाएंगे। यह तो समय ही बताएगा। फिलहाल मीडिल वर्ग के लोग भी पूंजी संचय करना शुरू करे दें। पांच साल के बाद का भारत सामान्‍य और गरीबों के लिए नहीं होगा। भारत बदलेगा, भारत का अमीर बदलेगा लेकिन भारत की तकदीर,भारतीय गांव,भारतीय किसान नहीं।

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