ओपिनियन पोल अर्थात चुनाव से पूर्व अनुमान लगाना।

ओपिनियन पोल अर्थात चुनाव से पूर्व अनुमान लगाना। अनुमान सही भी हो सकता है और गलत भी। 2004 के लोकसभा चुनाव में किस प्रकार सारी कंपनियों का ओपिनियन पोल फर्जी साबित हुआ था। ये प्रमाणित करता है कि इस तरह के ओपिनियन पोल जनता को बरगलाने का काम करती है। इस तरह के सर्वे में काफी छोटा सेंपल लिया जाता है। जिससे नतीजा सही नहीं आता है। चुनावों की तारीख जैसे जैसे करीब आती जा रही है। कांग्रेस की परेशानियां बढती दिख रही है। ओपिनियन पोल को लेकर मेरा मानना है कि इसमें कुछ स्‍च्‍चाई भी है और कुछ चालबाजी भी है। 
     खैर चुनाव जीतना है सभी हथकंडे आपको अपनाने पडते हैं। चुनाव में किस पार्टी की जीत होगी यह कहना मुश्किल है लेकिन शोसल मीडिया और ओपिनियन पोल में कांग्रेस को मात दे रही है भाजपा। ओपिनियन पोल मनोवैज्ञानिक रूप से मतदाता और पार्टी दोनों को प्रभावित करता है। इस तरह के एजेंडा सेटिंग से वोटों की संख्‍यां में 1-5 प्रतिशत तक इजाफा होता है। जो पूरी तरह से चुनावी समीकरण को प्रभावित करती है। ओपिनियन पोल वर्तमान समय में ओपिनियन लीडर की भूमिका अदा कर रहा है। जो रातो रात मतदाता को प्रभावित कर सकता है। कोई भी व्‍यक्ति अपना वोट खराब नहीं करके वह जीतने वाली पार्टी को वोट देना चाहता है। ओपिनियन पोल कई बार सच्‍चाई से पडे होता है। ऐसे में जनता को कई बार गुमराह भी किया जाता है। इसे बंद करने में ही भलाई है। इस विषय पर आपके विचार अलग हो सकते हैं।

Comments

Popular posts from this blog

विज्ञापन का इतिहास अर्थ,परिभाषा,प्रकार एवं आचार संहिता

जनसंचार का सबसे प्रभावी माघ्यम है सिनेमा।

संचार शोध