...और सेगांव बन गया सेवाग्राम

...और सेगांव बन गया सेवाग्राम आज शहीद दिवस है। आज ही के दिन बापू की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। पूरा देश उन्हें आज श्रद्धांजलि दे रहा है। ऐसे में बापू की एक अनूठी स्मृति को आप तक पहुंचाने की कोशिश है। उनकी कर्मस्थली सेवाग्राम से जुड़ी एक रोचक स्मृति। कैसे बापू ने अपने पत्राचार की सुविधा के लिए सेवाग्राम का निर्माण किया। चूंकि बापू यहां पर सेवाभावी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देते थे, इसलिए इसका नाम भी उसी के अनुरूप रखा गया। वर्धा शहर से 8 किलोमीटर दूर स्थित एक ऐसा गांव, जिसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपनी कर्मस्थली बनाई। इसी गांव से कभी भारतीय राजनीति की दिशा तय होती थी। यहां से प्रसारित संदेश पूरे भारत के लिए सूत्र वाक्य बनता था। 1942 में भारत छोडो़ आंदोलन की नींव इसी गांव में रखी गई थी। सेवाग्राम पहले ‘सेगांव’ के नाम से जाना जाता था। तब का ‘सेगांव’ आज ‘सेवाग्राम’ बन गया है। इसके पीछे एक रोचक कहानी है। बात उन दिनों की है, जब बापू साबरमती से निकल कर मध्यभारत में आंदोलन के लिए स्थान ढूंढ़ रहे थे। यह गांव भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कार्यस्थली के रूप में जाना जाता है। इस ग्राम की बुनियाद महात्मा गांधी ने रखी। बापू के मृत्यु के छः दशक बाद भी यह ग्राम शांति, अहिंसा और कर्तव्यनिष्ठता का संदेश दे रहा है। महात्मा गांधी ने अपने जीवन के अंतिम बारह साल (1934 से 1946 तक) सेवाग्राम में बिताया। साबरमती आश्रम से निकलने से पहले गांधी जी ने प्रण किया था कि हिन्द स्वराज्य के बिना साबरमती आश्रम नहीं लौटेंगे। साबरमती आश्रम छोड़ने के बाद गांधी जी मध्य भारत में रहना चाहते थे। इसी बीच वर्धा के जमनालाल बजाज और उनके साथियों के आग्रह पर सन 1934 में महात्मा गांधी मगनबाड़ी पहुंचे। मगनबाड़ी और आसपास के लोगों को अपने आंदोलन की जानकारी देने के लिए 1936 में ‘सेगांव’ में एक सभा का आयोजन किया। सभा की समाप्ति के बाद महात्मा गांधी ने यहीं बसने का फैसला कर लिया। यही नाम आजादी के आंदोलन के दौरान पूरे विश्व में चर्चित हो गया। उन दिनों यह गांव भारतीय राजनीति का प्रेरणास्त्रोत माना जाता था। इस गांव की सबसे बड़ी खासियत है कि यह भारत के मध्य में स्थित है। इसी कारण बापू ने सेवाग्राम में अपना कार्यालय बनाया और देश को नई दिशा दिया। उसके बाद देश भर के लोग गांधी जी से मिलने ‘सेगांव’ आने लगे। गांधी जी ‘सेगांव’ से ही पूरे भारत पर नजर रखते थे। बापू यहां कुष्ठ रोगियों का इलाज भी किया करते थे। कुछ समय बाद कस्तूरबा भी बापू के साथ आ गईं। नागपुर-भुसाबल रेल खण्ड़ पर ‘सेगांव’ नाम का एक और गांव था। इस गांव के नाम से ही रेलवे स्टेशन ‘सेगांव’ था। दोनों गांव का नाम एक ही होने के कारण गांधी जी के लिए भेजी गई चिट्ठियां कई बार रेलवे स्टेशन वाले ‘सेगांव’ में चली जाती थीं। इस कारण संवाद स्थापित करने में बापू को परेशानी होती थी। इसके समाधान के लिए 1940 में बापू ने ग्रामवासियों की सभा बुलाई। सभा में ग्रामवासियों की सहमति से महात्मा गांधी ने ‘सेगांव’ का नाम बदलकर ‘सेवाग्राम’ रख दिया और बाद में वह सेवाग्राम के नाम से ही जाना जाने लगा। आज यही सेवाग्राम महात्मा गांधी की कर्मस्थली के रूप में दुनिया भर में जाना जाता है।
                                                                                  दैनिक भास्‍कर और लोकमत समाचार में प्रकाशित

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