वर्धा में गांधी और शराब



वर्धा में गांधी और शराब 

सामाजिक एवं राजनीतिक दृष्टि से वर्धा सर्व-श्रेष्ठ स्थानो मे से एक है । देश को आजादी दिलाने  में महात्मा गंघी का प्रमुख योगदान रहा । अहिंशा के रास्ते पर चल कर हमे आजादी मिली सेवाग्राम स्थित बापू कुटी आज भी एक अहिंशा के प्रतीमूर्ति के तौर पर अवस्थित है । सेवाग्राम आश्रम में देश-विदेश के सैलानी हर रोज आते रहते हैं । आज जनमाध्यमों के प्रयोग से यह स्थान दुनिया भर में लोकप्रिय हो चुका है । वर्धा से सटे हुए पवनार आश्रम है जहां आचार्य विनोबा भावे की कर्म भूमि है । भूदान आंदोलन के शिखर पुरुष पर गंदी जी के अहिंशा का पूर्ण प्रभाव था । सामाजिक हित के लिए ही इन महा पुरुषों ने वर्धा के लिए जो काम किया वो सराहनीय है । इन महा पुरुषों पर आध्यात्मिक प्रभाव भी ज्यादा था । शसत्रों में वर्णित समाज कल्याण को इनहोने आगे बढ़ाया । समाज हित के लिए इनका नाम स्वरनाक्षरों में अंकित है । बापू उस काल के सर्व श्रेष्ठ मास लाइन कम्यूनिकेटर थे। जिंका प्रभाव समाज के हर वर्ग तक पाहुचा इसमे धर्म और भाषा की किसी प्रकार की दीवार नहीं थी । जीवन के अंतिम वर्षों में गांधी जी का ज्यादा समय वर्धा में ही गुजारा । वे हमेशा मध्यपान के विरोध में रहे । क्योकि मध्यपान से समाज पथ भ्रष्ट हो जाता है । हो सकता है गांधी जी अंग्रेज़ो के बीच व्यापक रूप से शराब के दुर्गुणों को देखा हो । जिसका शिकार भारत वर्ष था । दारू बंदी के लिए गांधी जी ने व्यापक रूप से अभियान चलाया इससे होने वाले नुकसान को बताया । अपने पत्रों यथा नवजीवन,हरिजन एवं यौन इंडिया में दारू बंदी पर व्यापक लेख लिखते रहे । सामाजिक बुराइयों से छुटकारा पाने के लिए कही भी जाने को तैयार रहते थे । वर्धा में खाश कर दारू बंदी के लिए गनयमान लोगों का सहारा लेकर आंदोलन चलाते रहते थे । गांधी जी के स्वर्ग वास के बाद मध्य निषेध का आंदोलन आचार्य विनोबाभावे के हाथों में आ गया । मुंबई से लेकर दिल्ली तक इनहोने दारू बंदी के खिलाफ आवाज पाहुचाई । अंतत वर्धा में शराब बंदी कानून 25 अप्रैल 1975 को आया । जिसे मुंबई शराब बंदी कानून के नाम से भी जाने जाता है । इससे संबन्धित मामला प्रकाश में आने पर प्रशाशन मुंबई शराब बंदी कानून की धारा 65 (अ) और (ई) मामला दर्ग होता है ।
              वर्धा में मध्य निषेध के प्रति मेरी उत्सुकता बढ़ी की आखिर यहा पर मध्य निषेध क्यू  है ? विगत 2 सालों से शराब जब्ती की घटना मीडिया से मिलती रहती है ।इस विषय में उतशुकता वश अपने परियोजना शोध का अंग बनाया जिसका शीर्षक है “वर्धा में मध्य निषेध की प्रासंगिक्ता एवं मीडिया परिदृश्य” ।  भौगोलिक स्तर पर यह गरम स्थान है । यहा पर सामाजिक ताना बाना रास्ते पर है । दारू बंदी के खिलाफ अधिसंख्य जनता है परंतु औधोगीकरण ने अपने साथ बुराई के तौर पर शराब भी लाया । दारू पीने वाले से वो तो खुद पीड़ित है साथ ही साथ घर परिवार एवं समाज भी पीड़ित है । यहाँ अवैध से रूप से बिक्री होना दुखद पहलू है । सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक रूप से ये जिला सम्पन्न है । साक्षरता का दौर राष्ट्रिय अवशत से ज्यादा है फिर भी चोरी चुपके अवैध शराब की खरीद बिकरी होती रहती है । जनमाध्यमों का व्यापक सामाजिक सरोकार है । समाज में परिवर्तन हेतु आन्दोलनों को इनका समर्थन मिलता है । मीडिया जनहित के मुद्दों को हमेशा साथ देता है । जनता के लिए कंधा से कंधा मिला कर जो जनमाध्यम चलेगा वो समाज की नजर में सर्व श्रेष्ठ रहेगा ।  वर्धा में मध्य निषेध आंदोलन को गतिशील करने में गांधी विचार परिषद की भूमिका सराहनीय रही है । जन-जागृति अभियान चला कर , समय समय पर गोष्ठियों आदि का आयोजन करते रहता है । अमूमन देखा जाये तो देश के और स्थानो के मुक़ाबले यहा की स्थिति ठीक है ॥ शराब के कारण सार्व जनिक स्थानों पर अफरा तफरी का माहोल नहीं है । बच्चों और खास कर किशोर वय शराब से  दूरी बनाए हुए हैं । 100 प्रतिशत मध्य निषेध तो नहीं है फिर भी मन में कानून का डर बैठा रहता है । अगर पड़ोसी जिलों से सहयोग मिलते तो पूर्ण दारू बंदी मुशकिल कार्य नहीं है । उत्त्पादविभाग में जहां कर्मियों की कमी है ,तो पुलिश प्रसाशन के पास और भी कार्य है ।
             शराब पीने के प्रति हाल के वर्षों में नवपूंजीवादी व्यवस्था के विकृत रूप में सामने आया है । पश्चमी रहन सहन होटल संस्कृति ,डिस्कोक्लब एवं वियर बार का देश व्यापी फैलाव हुआ है जो यहाँ देखने को नहीं मिलता । मध्य पान आज प्रतिष्टा का विष्य बन गया है । ये अवगुण का भंडार है । इसके शेवन से आदमी पथ भ्रष्ठ होता ही है परिवार को भी कष्ट झेलना पड़ता है । समकालीन व्यावहारिक तथ्यों पर सरकारों को ध्यान देना होगा । समाज हित के लिए सख्त कानून बना कर धीरे धीरे देश व्यापी शराब बिकरी को नियंत्रण करना चाहिए । आज दुनिया सूचना क्रांति के युग में पहुँच चुकी है , जहां प्रिंट , इलेक्ट्रॉनिक व वेब माध्यमों का सहारा लेकर नियंत्रण के कार्यक्रम चले तो भविष्य बेहतर है । आज मीडिया अपने पूरे अंदाज में है । सिर्फ सरकार को पहल करना है । सारे पहलूवों पर गौर करे तो दारू बंदी को विस्तृत रेप देना पड़ेगा । सीमित क्षेत्रों में रोक की बात बेमानी होती जाएगी । जनमाध्यमों का स्वरूप क्षेत्रीए स्तर पर तीव्रता लिए हुए है । स्थानिए संवाददाताओं के नियुक्त होने से खबरों का असर जनता पर देखने को मिल रहा है । वर्धा का साक्षारता दर बहुत अच्छा है इससे फायदा समाज एवं जनमाध्यमों को भी होता है । अखबारों की पाठकों की संख्या अच्छी है । आज क्षेत्रीय पृष्ठों के आधार पर ही उस क्षेत्र के बारे में जानकारी मिलती है ।

 


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